________________ 37. दृष्टिप्रवरोध - तेरमी द्वात्रिशिंका दृष्टिप्रबोधनो जेम वासमी द्वात्रिंशिकाने दृष्टिप्रबोध नाम भापवामी भाव्यु छे अने आपणे तेमां दृष्टिवाद विशे मालेखन थयु होय तेवी अपेक्षा राखी शकीए / आ द्वात्रिंशिकानू नाम आपणने खोवायेला 'दृष्टिवाद' नामना बारमा मंगनी याद मापे छ / शक्य छे के आ० सिद्धसेनना समयमां दृष्टिवाद नामर्नु बारमुं मंग जाणीतुं होय ने आ• सिद्धसेने दृष्टिवादने अहीं संक्षेपमा रजू को होय / आ संदर्भमां में वेबर भने एम. डी. महेता द्वारा आपवामां आवेली विषयसूची तपासी / तेमां चौद पूर्वोमांनुं प्रथम छे उत्पाद / आ द्वात्रिंशिका पण ते शब्दथी ज आरंभ पामे छे / आपणी पासे माहितो पण अपूरती छे भने ते प्रमाणित नयी एटले कशें चोक्कस कह। न शकाय / शक्य छे के प्रथम पूर्वमा उत्पाद, व्यय वगेरेनु आलेखन थयु होय / ___आ० सिद्धसेननी स्तुतिओ जेटली प्रसिद्ध छे तेटली तेनी बीजी कृतिओ नथी अने तेथी ते शुद्ध रूपमा जळवाई नथी एटले तैमाथी सुव्यवस्थित अर्थ अवगत करवानुं काम दुष्कर छ / पं० सुखलालजी अने दोशीजोए पण आज मुश्केली अनुभवो छ / पाठांतर पण माझा प्राप्त थतां नथी जे मददरूप बनी शके / आ संयोगोमां श्रीविजयलावण्यसरिजीजें काम घणुं महत्त्व धरावे छे / भा• सिद्धसेन भारपूर्वक जणावे छे के न० महावीर सिवाय