________________ दशावि छे आ० सिद्धसेन परिणामनो पण स्वीकार करता होय तेम जणाय छे / छपायेली प्रति प्रमाणे वारमा लोकमां मति भने श्रुतज्ञाननो अमेद दर्शावायो छ / आ अभेदना कारणरूपे मा० सिद्धसेन वैयर्थ्य अने अतिप्रसंग दोष दर्शाव छ / श्री. यशोविजयजीए 'ज्ञान-- बिंदु' मां आनु विस्तारथी आलेखन कयु छे / अलबत्त, मा० सिद्धसेन सन्मतितर्क' (५-२६)मां ज्ञानना पांच प्रकार स्वीकारे छ ज / मति, अवधि भने केवल - बीजा ज्ञान प्रकारो साथे कशु सामान्य धर.क्ता नथी ज्यारे श्रुत अमे मनःपर्यायनो (अवधि साथे) भमेद सिद्ध थई शके एम छे / (केवळ) ज्ञाननो विषय समग्र होय छे एटले के एवं कशु नथी के जे ज्ञाननो विषय न बनी शके / जे कोई .आ शान घरावे छ तेने (कर्म) क्षय पाम्यां होई कशां भावरण होतां नथ ( असति प्रतिबन्धके ) / ___परिणानरूपी फलबालु कर्म होय छे भने ए परिणाम कर्म अनुसार कर्मात्मक ज होय छे / ए ज राते आ० सिद्धसेन दर्शावे छे के धर्म अने अधर्मनुं शुं फल ! भाकाशनी तेओ व्याख्या आपे छे-'आकाशमवगाहाय' (सरखावी जुमओ : 'तत्वार्थसूत्र' 5-18) * मा सिवाय दिशानुं भिन्न अस्तित्व नथी। . अनेक नवा विचारो प्रस्तुत कराया होइ मा कृति घणी महत्त्वपूर्ण छ। आ विचारो आगमोथी भने परंपरागत विचारोथी भिन्न होइ लहियाए मा० सिद्धसेन माटे एनो पुष्पिकामा पोताना तरफथी 'द्वेष्य' शन्द उमेरी दोषो जणाय छे /