________________ 34 कडक पण महत्त्वनी गणाय तेवी नियमावली आ० सिद्धसेन आपे.छे पंदरमा श्लोकमां ते कारणो दर्शावे छे जेनाथी शरीर अने ज्ञान पुष्ट थाय तो सोळमामां गुरुए विद्यार्थीना केवां आचरणोने निवारवां जोईए ते दर्शाव्युं छे / पछी आ० सिद्धसेन पाश्चात्य दर्शन एटले के उत्तरकालिक ज्ञानसाधना विशे लखे छ / पहेला जे सहज़ रीते छोडी दी, होय ते प्रयत्नतः प्राप्त करवू, कारण के बुद्धिमानो, पंडितो ग्रंथिरहित होय छे अथवा तो पहेलां जे अयत्नने कारणे छोडी दी, होय तेने 'फरीथी प्रयत्नपूर्वक साधq / जे व्यक्ति जे तीर्थमां होय ते तीर्थनु परिपालन अवश्य करवू जोईए / आ प्रकारे शासन- अनुष्ठान करनार छेवटे अवश्य निर्वाण पामे छे / आ द्वात्रिंशिकामां आ० सिद्धसेननी शिक्षण कार तरीकेनी प्रतिभा व्यक्त थयेली देखाशे / निश्चय - ____आ ( भोगणीसमो ) द्वात्रिंशिकामां मा० सिद्धसेन पोताना केटलाक निश्चयो प्रस्थापित करे छे / आ कृति तथा 'सन्मतितर्क' एमने अभेदवादना पुरस्कर्ता तरीके प्रस्थापित करे छे / तेमना नवा अभिगमना कारणे अने विशिष्ट निश्चयोने कारणे आ कृति घणी महत्त्वनी छे / आ द्वात्रिंशिकानां बे पद्यों पर श्री. यशोविजयजीए टोका रची छे जेमा मति अने श्रुत तथा अवधि अने मन:पर्याय ज्ञाननी चर्चा करवामां आवी छ /