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________________ 33 सूचनाओ आजना युगमां पण एटलुं ज महत्त्व धरावे छे / मा युगमा ज्यारे ज्ञान कशा पण विवेक विना आपवामां आवे छे त्यारे ते शक्ति अने साधनाना विनाशरूप बनतुं होय छे / आ० सिद्धसेन प्रथम श्लोकमां ज आ तथ्य तरफ ध्यान दोरे छे / तेओ नोधे छे के ज्ञान आपतां पूर्वे आ बधां पासां पर नजर राखवी नोईए / देश, काळ, अन्वय (कुल परंपरा), आचार, वय, प्रकृति, शक्ति (जिज्ञासा उत्साह अथवा तो मुमूर्षा) / आपणे जोईए छीए के 'भगवद्गीता' पण एनुं ज्ञान आपका माटे शत मूके छे (18-67) / त्यार बाद आ० सिद्धसेन शिक्षकनो आदर्श व्यक्त करे छे जेनामां बाह्य तेमज आंतरिक पवित्रता होय, जे सौम्य होय, तेजस्वी होय, जेनामा करुणा रही होय, जे स्वसमय अने परसमयनो ज्ञाता होय, जेनी वाणी सुमधुर होय ने जेणे मन अथवा तो काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि जत्यां होय ते आदर्श शिक्षक छ / आवो गुरु तो शोध्यो जडे नहीं, बीजु बधु होय पण 'जिताध्यात्म' न होय / ___आ द्वात्रिंशिकामा आ० सिद्धसेन तेमना समयनी परिस्थति तरफ निर्देश करता होय तेवू पण देखाय छे, जेम के चोथा श्लोकमां___हीनानां मोहभूयस्त्वाद् बाहुल्याच्च विरोधिनाम् / " .. हीन माणसोमां व्यापकपणे मोह, अज्ञान छवायेलुं छे भने अनेक प्रकारना विरोधीओनुं बाहुल्य छे, आवा संयोगो बच्चे कल्याणप्रद शिक्षण विशे आ० सिद्धसेन लखी रह्या छ / ... त्यार बाद आ० सिद्धसेन शैक्षोना विभागो दर्शाचे छे, तेमना आचरण विशे दर्शावे छे / अगियारमा ३लोकमां विधार्थी माटे
SR No.004300
Book TitleDwatrinshad Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherVijaylavanyasuri Granthmala
Publication Year1977
Total Pages694
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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