________________ आ० सिद्धसेन जणावे छे के कषायमां कशो क्रम होतो नथी एटले के एक पछी बीजु- काम पछी क्रोध ए रीते जेम 'गोता' मां दर्शावायुं छे 'ध्यायतो विषयान् पुंसः........' आचार-अनाचारनुं कारण अचिन्त्य छे ( जुओ 'प्रशमरतिप्रकरण' उमास्वाति कृत-३४५ कारिका ) / एना विशे कशुं निश्चित कही न शकाय / जेम के घी विशे 'आयुर्वै घृतम्' एम कहेवामां आवे छे, गमे त्यारे रोगीने एनो भलामण न करी शकाय / रोगीनुं योग्य परीक्षण करो पछी योग्य लागे तो भलामण करो श काय / घो सामान्य रीते शरीरसंपत्ति माटे सारं गणाय पण अमुक रोगोमां अथवा तो अमुक व्यक्तिओने ते आपा न शकाय, ए ज रीते अमुक शुद्ध आचार अने अमुक अशुद्ध आचार तेवो निरपेक्ष निर्णय न करी शकाय / प्रत्येक गुण जे परिणाम होय छे ते बधार्नु एक स्वरूप होय छे / शुद्धि आचारात्मक हाय छे / "देोषेभ्यः प्रब जन्त्यार्यों गृहादिभ्यः पृथग्जनाः / " . आ० सिद्धसेन- आ महावाक्य याद रहो जाय एवं छे / आर्य पुरुषो दोषोनो त्याग करे छे ज्यारे सामान्य माणसो घर बारनो त्याग करे छे / ते समयमां आर्यसंज्ञा उत्तम पुरुषो माटे वपराती / श्री. विजय लावण्यसूरिजो संसृतिसागरमांथो पार जवानी कामनावाळा पुरुषोत्तमोने आर्यों गणाबे छे / ___पछी मन- महत्त्व दर्शावायुं छे / मनथी विषयोथो दूर जवाय छे, मनथी ज़ एने पामी शकाय छे. 'मन ए ज मनुष्यो माटे बंध