________________ ने छेवटे कादव बेसी जतां शुद्ध बने ते रीते केवलज्ञानमां बधा विषयोर्नु प्रकाशन चाक्षुष पेठे थाय छे / आमां निर्वृत-मुक्तनी ओ० सिद्धसेने करेली व्याख्यानी सरखामणो 'गीता'मांथी ब्राह्मी स्थिति साथे करी शकाय / आ द्वात्रिंशिकामां 34 श्लोको छे एटले के बे वधाराना श्लोको छे, शक्य छे के बे श्लोक क्षेपक होय पण ते कया ए कही शकाय एम नथो छेल्ला बे तो नथी ज। बे द्वात्रिंशिकाओना श्लोक भेगा थई गया होय तो ए पण शक्य नथो / शिवोपाय __सत्तरमी द्वात्रिंशिकानुं 'शिवोपाय नाम भाप्यु छे / आ द्वात्रिंशिकामां मोक्षनो मार्ग दर्शाववामां आव्यो छे / 'सन्मतितर्क'नी जेम मही पण आ० सिद्धसेन ज्ञान अने चारित्रना महत्त्व पर एकसरखो भार मूके छे / व्रतो अने यमो जेम अध्यात्मविनिश्चय माटे होय छे ए ज रोते शैक्षो माटे दीक्षाग्रहण मुक्तिमार्गमां स्थिरता माटे होय छे / पछी मिथ्या दर्शनना आलेखनपूर्वक सम्यग्दर्शननुं महत्त्व प्रस्थापित करायु छे / कोई एवी दलोल करे के मिथ्यादृष्टिथी गेरफायदो शो ? एनाथी पाप थाय ? आ० सिद्धसेन एने उत्तर आपे छ / अलबत्त, मिथ्यादृष्टिथी पाप नथी थतुं परन्तु तेने गेरफायदो तो छ ज / मिथ्यादृष्टिथी व्यक्ति क्रोधादि कषायनो भोग बनेलो रहे छ / बीजी तरफ जे व्यक्ति सम्यग्दृष्टिवाळो छे ते ब्रत-यम पाले छ भने तेथी क्रोधादिथी मुक्त रहे छे /