________________ केवो माणस तत्त्वज्ञानने योग्य छे ते आ० सिद्धसेन दर्शावे छे श्रद्धावान्, अपायनो ज्ञाता, परीषह जीतेल, भव्य अने गुरुए आदेश पेल (अष्टांग) योगर्नु आचरण करे / आजना युगमां पण मा महत्त्वनुं छे / आ० सिद्धसेन स्पष्ट करवा मागे छे के सहु कोईने माटे आ न होइ शके / गुरु ज आनो योग्य निर्णय करी शके / त्यार बाद पण योगनी साधना गमे त्यां न करी शकाय / पवित्र अने निष्कण्टक स्थानमा देह, प्राण भने मनने समान करी स्वस्तिकासन जेवा आसननो जय करी लेवो- एकाग्रतानी सिद्धि माटे अहीं योगनी प्रारंभिक क्रियाओ दर्शावाई छे, जेमां 'भगवद्-- गीता' के 'योगसूत्र' साथेनी समानता जोई शकाशे (भग० गी० -- 6-10-11 ; योगसूत्र साधनापाद 46, स्थिरसुखमासनम् / ) पद्मासन, विरासन, भद्रासन, स्वस्तिकासन, दंडासनं वगेरे सुखासन छे / आ बधांमां पद्मासन वधारे जाणीतुं छे पण स्वस्तिकासन वधारे सुखसाध्य छे अने शक्य छे के आ० सिद्धसेन पोताना वैय.. क्तिक अनुभव परथी स्वस्तिकासनने वधारे पसंद करे छे / _ पछी आ० सिद्धसेन प्राणायामनुं फल दर्शावे छे / मनु अने पंचशीख पण आवां फल बतावे छे, जे वाचस्पति मिश्रे नोध्यां छे / जैनदर्शन प्रमाणे योगनी प्रक्रियाओनु ज्ञान के मोक्ष जेवं फल न होय पण मा रोते ते उपयोगी छ / तेनाथी शरीरनां जाड्य वगेरे दोषो नाश पामे छे / ___ शुक्ल ध्यान विशे सिद्धसेने प्रमाणमा ठीक लक्ष्यु छ / आ शुक्ल ध्यान बाद केवलज्ञान उत्पन्न थाय छे / कादववालं पाणी ठरी---