________________ 28 तन एटलं ज साचुं एवो अंधश्रद्धा न राखो शकायं / परीक्षा करीने पछो ज तेनो स्वीकार करो शकाय / जे तर्क प्रमाणित छे ते ज टकी रहे छे, ते ज उन्नति पामे छे / / __वधुभां आ० सिद्धसेन परीक्षा विषय दर्शावे छे / अनेक शास्त्रकारोमां जरूर कोइक सर्वज्ञ अने जगतना हित अर्थे जेणे अनेकान्तनुं शासन आप्यु छे ते छे, तेनी शोध करवानी छे, बोजाओथो शुं ? परीक्षण पछी जेनां वचन योग्य लागे तेनो स्वीकार करवानो / परोक्षा पछी जेवां जिननां वचन युक्तिपूर्वकना लागे छे तेवां जो बुद्ध वगेरना लागे तो बुद्धने पण सर्वज्ञ गणवा अने जो एम न थाय तो जिनने आप्त गणवा अने तेमनां वचन स्वोकारवां, एम श्रीविजयलावण्यसूरिजी चोवीशमा श्लोकनो भूमिका बांधतां लखे छ / अंतमां सिद्धसेन पोतानो आप्त विशेनो निश्चय जणावे छे - " मया तावद् विधिनाऽनेन शास्ता / जिनः स्वयं निश्चितो वर्धमानः // " के मे आम अंतिम तीर्थंकर वर्धमानने जिन तरीके निश्चित कर्या छ। योगाचार-- जैनधर्ममां प्रारंभिक योगर्नु आलेखन आ (दशमा) द्वात्रिंशिकामां करायुं छे / आ. सिद्धसेन पछी आ० हरेभने 'योगबिन्दु'मां योगनुं व्यवस्थित निरूपण कयु छे / आ द्वात्रिंशिकामां आलेखन 'प्रमाणमां वीसमा श्लोक पछी शरू थाय छे /