________________ आठमी द्वात्रिंशिका वादने विषय बनावे छे पण मुख्यत्वे तेमां वाद पर आकरी टीका कराई छ / 'वादोपनिषद्'मा जे चतुर विलक्षण वादीनां दर्शन थतां हतां तेने स्थाने अहीं शान्तशील जैन साधुनां दर्शन थाय छे / शक्य छे के आ तेमनी पाकट वयनी रचना होय अथवा तो आमां एमर्नु हृदय व्यक्त थयु होय, ज्यारे 'वादोपनिषद्' पोताना शिष्योता शिक्षण अर्थे समयनो तथा शासननी आवश्यकतानो विचार करी रचायुं होय / आ० सिद्धसेन चोकस उदाहरणो आपे छे अने चित्रात्मक वर्णन आपे / वादीनी वर्तणूक, तेनी उद्धताई, गर्व वगेरेनो तादृश चितार अहीं मळे छे / एक युगना दर्शन तरीके पणा आ कृतिओ रस पडे तेवी छ / जैन तत्त्वज्ञान उपलब्ध द्वात्रिंशिकाओमां 6,10,17,18,19 अने 20 जैन तत्त्वविद्यानु आलेखन करे छे, एमां प्रथम चारनां नाम आपवामां आव्यां नथी, परन्तु तेमांना विषयवस्तुने ध्यानमा लेतां छद्री द्वात्रिंशिकाने आप्तविनिश्चय, दशमीने योगाचार, सत्तरमीने शिवोपाय अने अढारमाने अनुशासन नाम आपो शकाय / आप्तविनिश्चय___आ (छट्ठो) द्वात्रिंशिकामां आ० सिद्धसेने पुरातन मतवादीओ पर आकरा प्रहार कर्या छ / पुरातनोए जे व्यवस्था निश्चित करी छे तेने आंख मींचीने अनुसरी न शकाय एम आ० सिद्धसेन जणावे छ / अने पुरातननी मान्यतामा स्थिरता शो रीते होई शके ! आज़े जे वर्तमान छे ते थोडोक समय पसार थतां पुरातन बनशे माटे पुरा