________________ ब्राह्मण पंडितो जैनधर्मनी दीक्षा लेवा मांड्या एटले वाद जैनधर्ममां पण आव्यो एम कहो शकाय परन्तु ते अर्धसत्य ज होवानुं / ते समयमां दरेक धर्मने पोतानी स्थिति माटे वादनो आश्रय लेवो पडे एवी स्थिति हशे / आ० सिद्धसेन पूर्वे कोईए वाद पर ग्रन्थ रच्यो होय के तेनी शास्त्रीय चर्चा करी होय ते जाण्यामां नथो पण मावा प्रन्थो नहीं ज होय एम न कही शकाय / वाद अंगेनी रीतसरनी व्यवस्था अस्तित्वमा होय एवी छाप तो आ० सिद्धसेननी कृतिओ परथी ऊठे छ ज / ' सातमी द्वात्रिशिकानुं नाम 'वादोपनिषद्' छे, तेमां केवी रीते वाद करवो तेनुं व्यावहारिक दृष्टिबिंदुथी आलेखन करायुं छे / आ० सिद्धसेननुं वाद अंगेर्नु प्रत्यक्ष ज्ञान तेसां छत्तुं थाय छे, तेनी ऊंडो समन पण तेमां देखाय छे / आटलो ऊंडो समजवाळा माणसने वादमां जोतवो केटलो मुश्केल हशे ? प्रथम तो वाद करनार व्यक्तिए प्रतिवादी अंगे माहिती मेळववी, प्रभु (राजा) विशे विचारवं, पोताना पक्षनो विचार करवो, सभाना सामान्य वलणनो विचार करवो ने पछी वादनो आरंभ करवो, वादसभामां केवी रीते वर्तवं तेनुं वर्णन एटलं आबेहूब छे के आपणे प्रभावित थया विना रहो न शकोए (ग्लो०८-१४) / राजसभाओमां विजयो मेळव्या विना धर्म, अर्थ, कीर्ति कशुं संपादित करी शकातुं नहोतुं अने साध्य विना सभामां विजय पण न मळे ए पण आ० सिद्धसेन भारपूर्वक दर्शावे छे (6-31, 7-2) /