________________ 25 आ द्वात्रिंशिकामओमां आ० सिद्धसेननो भाषावैभव तथा छंदो परनु प्रभुत्व देखाय छे / कालिदासनी जेम ज एमणे अनेक छंदो सहजरीते प्रयोज्या छे क्यांय आयास देखातो नथी / छंदोर्नु आटलं स्वाभाविक वहन बहु ओछा कविमोमां जोवा मळे छे / आ० सिद्धसेन स्रग्धरा, वियोगिनी, पुष्पिताना वगेरे छंदो तो प्रयोजे छे साथे पृथ्वी जेवा तेमना समयमा ओछा प्रचलित छंदमां आखी द्वात्रिंशिका रचे छे ते एमना शक्तिनो परिचय आपवा पूरतुं छे / एमनी भाषा धारदार अने प्रवाहो छ / एमनां औचित्यपूर्ण उपमान (जेमके 1-12,2-5,2-11, 13 वगेरे) तेम ज अनुप्रास ध्यानखेंचे तेवा छे। वाद- . __आपणा देशमा वादनो प्रचार क्यारथी अने केवी रीते थयो हशे ए तो स्पष्टपणे दर्शावो शकाय एम नथी परन्तु एम लागे छे के आरंभमां वादना मूलमां जिज्ञासानु तत्त्व रह्यं हशे पण धीरे धीरे ए तत्व घसातुं चाल्युं ने वादनो उपयोग सर्वोपरिता साधवाना साधन तरीके थवा लाग्यो / हजो हमणां सुधी तेनो प्रचार हतो जेने शास्त्रार्थ कहेवामां आवतो / ...वेदकाळथी तात्त्विक प्रश्नो जागता अने कोईक प्रश्नना एक वधारे उत्तर संभवे तेमांथी वाद जागे / आगमग्रन्थो परथी नणाय छे के भगवान् महावीरनो समय वादविवादथी भरेलो हतो। घणा मत प्रचलित हता अने स्वीकृति माटे अरसपरस वाद थाय ए समजी शकाय तेवं हतुं / न्यायशास्त्रमा वादनो उल्लेख छे, 'चरकसंहिता'मां चर्चासभानो उल्लेख छ /