________________ 'स्वयंभुवः....' थी थतो हतो / आपणो द्वात्रिंशिकाओनी प्रतिनो मारंभ पण ए ज पंक्तिथी थाय छे / आ. स्वयंभू शब्द तत्त्वज्ञानना इतिहासमां महत्वनुं स्थान धरावे छे / आचार्य समन्तभद्रे तेमनी स्तुतिना आरंभ आ ज शब्द द्वारा. कर्यों छ / पहेली द्वात्रिंशिकामां आ० सिद्धसेननुं कवित्व ओछुव्यक्त थयु छे पण बीजी, पांचमी द्वात्रिंशिकामां वधारे स्फुट बन्यु छ / . जिननी स्तुति माटे आ०सिद्धसेन पासे योग्य कारण छे / तेनुं कारण नथी तो काव्यशक्तिनुं प्रदर्शन, परस्पर ईर्ष्या, वोरनी कीर्ति फेलाववानी कामना के श्रद्धामात्र परन्तु गुणज्ञ व्यक्ति माटे भगवान वर्षमान ज पूज्य छे, तेथी आ० सिद्धसेन स्तुतिओ द्वारा आदर प्रगट करे छे। आ० सिद्धसेन अन्य मतो पर प्रहार करवानुं चूकता नथी। बौद्धो वारंवार तेमनां निशान बन्या छे / कणादनुं तो नाम लईने (5-30) लन्यु छ / तेमां वर्धमान प्रत्ये जे भक्ति तथा विनम्रता छ तेबी अन्य तरफ नथी / बीजा तरफ तो उग्र प्रहार कराया छे / मही युगपद्वाद (1-32) देखाय छे पण सिद्धसेन तो अमेदवादना पुरस्कर्ता छ / शक्य छे के मान्यता पछीथी रूड़ थई होय अने द्वात्रिंशिकानी रचना ते पूर्वे थई होय / .... आ. सिद्धसेननी जिन प्रत्येनी भक्ति सहुथो प्रथम ध्यान सेंचे तेवीछे / एक भक्त इद्रयर्नु प्रतिबिंब तेमां पडछे / मावा प्रखर तार्किक मारलु भक्तिसभर हृदय धरावे छे ते पण एक नोपपात्र सक्त छ। -ववि तु भवसहमदुर्लमे परिचय एवं यथा तथाऽस्तु नः / "