________________ . मा० अभयदेवनो 'वादमहार्णव' अथवा तो 'तत्वबोवविधायिनो / टीका एक आकर ग्रंथ छे / न्यायावतार जैन न्याय परनो आ प्रथम. ग्रन्थ छ / तेना पर आ० सिद्धर्षिरचित विवृति एक नोंधपात्र अंग छ / तेनो तुलना दिङ्नागना 'प्रमाणसमुच्चय' साथे करी शकाय / तेमां. 32 श्लोक छे छतों वात्रिंशिकाओमां तेना समावेश करायो नथी। 'न्यायावतार'मा प्रमाणनो व्याख्या कराई छे अनें छेल्डे अनेकान्तनो स्थापना / स्तुति परक द्वात्रिंशिकाओ-- - 'द्वात्रिंशिकाओं'ना प्रगट पुस्तक प्रमाणे प्रथम पांच द्वात्रिशिकाओ भगवान् जिननी स्तुति ओ छ। अंगियारमी द्वात्रिंशिकामा कोईक राजानो स्तुति छे, जे संभवतः विक्रमादित्य लागे छ / अगैयारमो द्वात्रिंशिकानो अभ्यास डॉ० काउझेए करेलो हे अने ते. प्रसिद्ध छे / आ द्वात्रिंशिका ऐतिहासिकदृष्टिए धणी महत्त्वपूर्ण छ / ...मा द्वात्रिंशिकाओमां ज आ० सिद्धसेननो कवि सकिनी प्रतिमा काईक अशे प्रगट थाय छे अने आ० हेमचन्द्रनो उक्ति 'अनुसिद्धसेनं कवयः' नो भूमिका प्राप्त करे छ / प्रथम चार द्वात्रिंशिकामोर्नु नामाभिधान करायु नथी परंतु पांचमीने अन्ते - स्तुतिद्वात्रिंशिका' नाम आपायुं छे / ओ पाँचै द्वात्रिंशिकाओ एक 'प्रबन्धचिन्तामणि' प्रमाणे आ० सिद्धसेने मंगवान् पश्विनाथ मंतिो ऋषिभदेवनी 22 द्वात्रिशिकोमा रसुति करी मेन मारंभ * har