________________ 22 .. .. आ० सिद्धसेने करेलु सांख्यशाबर्नु निरूपण मने ईश्वरकृष्णा पहेलोंर्नु जणायुं छे / तेमना मनोवैज्ञानिक वलण ने मनुष्यस्वभावनी ऊंडी सूझने कारणे वादविद्या अंगेनी तेमनो कृतिमओ ऐटली ज महत्त्वपूर्ण गणावी जोईए। परंपरा योग्य रीते ज एमने कवि प्रभावक तरीके सन्माने छ / एमनी रचनाओमां भाषानी प्रवाहिता, कल्पमानी पमस्कृति, वक्रोक्ति, छंद पर असाधारण प्रभुत्व ने एवो ज भाषावैभव एमने महाकविमोमा स्थान अपावी शके एको छ / संस्कृत भाषाना अयोगद्वारा एमणे जैन दर्शनने बौद्धदर्शन सायेनुं स्थान भपाव्यु हाले / जैनधर्मनी एमनी सेवाओ बदल ब्राह्मणधर्ममा जे स्थान. शंकराचार्य, छे ते स्थान जैनधर्ममा आ० सिद्धसेननुं गणावू . सन्मतितर्क-- ... ... ... .. 'सन्मतितर्क' दर्शनशास्त्रनो महान ग्रन्थ छे अने श्वेतांबर. तेमज दिगंबर बने पंथोमा मानभयुं स्थान धरावे छे / आ० हरिभद अने बीजा घणा विद्वानोए तेमनी प्रशंसा करी छ / प्राकृत गाथाओमां रचायेलो अने त्रण कांडमां वहुँचायेलो आ दार्शनिक ग्रन्थ छे, तेनी सरखामणी आ० कुंदकुंदना 'प्रवचनसार' साथे करी शकाय / पहेलो कांड नयकांड कहेवाय छे, बोजाने जोवकांड भने त्रीजाने नाम आपवामां आव्यु नथी / श्रीवैध एर्नु अनेकांतवादकांड एq नाम सूचवे छे / शक्य छे के आ० सिद्धसेने काई नाम न आण्या होय / जीवकांडने बदले ज्ञानकांड के उपयोगकांड नाम होय ते शक्य छ सन्मतितक' पर बीजो टीकाओ उपरांत