________________ आ० सिद्धसेव दिवाकरनो नामोल्लेख करे छे / 'भ्यायावतार'ने मंते पण 'श्रीसितपट दिवाकर' लखेलु छ / 'सन्मति नर्क'नो पुष्पिकामो पण मा०सिद्धसेन दिवाकरना उल्लेख करे छे / आ सर्व कृतिमओमा एकसरखी शैलो जोई शकाय छ / आ०. सिद्धसेन स्वतंत्र विचारक छे अने परंपराना अंधपूजक नथी ए "सन्मतितर्क' अने 'निश्चयद्वात्रिंशिका' उपरथी पण देखाशे / तेथी: ज कोई परंपराभक्त लहियाए एमना नाम आगळ 'द्वेष्य' शब्द मूकी दोघो छ / मा०सिद्धसेनमा कवि अने तत्त्वचिंतकनुं अजब रसायण थयेलं छे। तेमनी स्तुतिओ पण तात्त्विक विचारणमोथी भरेली छ / तत्त्वज्ञाननी विभिन्न शाखाओनु एमनु-ज्ञान ध्यान खेचे एवं छे। तेमनां काव्योमांना उपमानो पण एवां ज एकसरंखां आकर्षक छे / मने 'सन्मतितर्क' अने 'द्वात्रिंशिकाओ' ना रचयिता एक ज आ० सिद्धसेन लाग्या छ। आ० सिद्धसेननुं प्रदान. मा० सिद्धसेने जैनोमां तर्कने सुप्रतिष्ठित कर्यों अने एक विशिष्ट दृष्टिबिंदु अर्यु / 'न्यायावतार'ने एक असामान्य प्रदानरूपे गणावी शकाय, जेमा आ०सिद्धसेने प्रमाणोनी व्याख्या बांधी अने बौद्धमतनुं खंडन कयु / अनेकान्तवाद अने अमेदवादना ए महान पुरस्कर्ता छे / तेमनां स्वतंत्र अर्थघटना पण एटलं ज महत्त्व घरावे छ / सास करीने मति अने श्रुतनी एकता / आ०सिद्धसेने सम-. कालीन दर्शता पर समर्थ रीते प्रकाश पाडयो छ /