SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 20. छल्ला लोकमा कुमुदचन्द्र एवु कर्ता नाम आप्यु छ / ऋषभदेवनी स्तुति करती 'चिकुरद्वात्रिंशिका' पण छेल्ला श्लोकमां कुमुदचन्द्र एवो नामोल्लेख धरावे छ / संभवतः आ कृतिमो मा० सिद्धसेन दिवाकरनी रचेली नथी, तेमां आ० सिद्धसेननो काव्यशक्ति भने तात्त्विक ऊडाण जणातां नशी। विशेषतः शब्दमोह देखाय छे। - परंपरा अनुसार 'सन्मतितर्कप्रकरण' अने 'द्वात्रिंशिकागो आ० सिद्धसेननी कृतिओ कहेवाय छे परन्तु पंडित जुगलेकिशोर मुख्तार त्रण सिद्धसेननी कल्पना करे छे। एक 'सम्मतितर्क'मा रचयिता, दिगंबरपंथना अने श्रीसमंतभद्र पछी थयेला सिद्धसेन, बींजा 'न्यायावतार ना रचयिता बेमणे केटलीक द्वात्रिंशिकामो पण रची हशे अने रोजा द्वात्रिंशिकाबीना रचयिता-आ वास्तविक जणातुं नथी / प्राचीन विद्वानो आ सर्व एक में आ० सिद्धसैननी कृतिमओ माने छ। श्री. सिंह क्षमाश्रमण आ० सिद्धसेनने 'सन्मतितर्क' भने 'न्यायावतार'ना की तरीके जाणे छे अने तेमनी प्रमाणद्वात्रिंशिका'मांथी उद्धरण आपे छे / मा० जिनसेन आ० सिद्धसेननो कवि भने प्रवादी तरीके उल्लेख करे छ / कमनसीबे प्रबंधो 'सन्मतितर्क' नो उल्लेख करता नथी परंतु तेना कारणे 'सन्मतितर्क' मने 'द्वात्रिंशिकामो'ना मिन भिन्न रचयितामो कल्पवानी आवश्यकता नथी / एकवीस द्वात्रिंशिकाओ एक न हस्तप्रतिमा मळे छे अने तेनी पुष्पिकाओमानुं लखाण उपयोगी गणाय / 19 मी शानिशिकाने मते आसिद्धसेनने 'द्वष्यसितपट्ट' का छ। 21 मी द्वानिशिका
SR No.004300
Book TitleDwatrinshad Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherVijaylavanyasuri Granthmala
Publication Year1977
Total Pages694
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy