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________________ - पूर्णिमाग छता साधु रामचन्द्रदरिरचितः विक्रमचरितमा अंतमां मा सिद्धसेने -'सिंहासनद्वात्रिंशिका' की रचना करेली एचं जणाव्युं छे। जो आ सत्य होय तो देशभरमा माणीती चनीश - पूतलीमोनी वार्तामोनां मूळ मा सिद्धसेवनी कृतिमा होवामां / परन्तु अन्य पुरावामओना अभावे कशुं निश्चयात्मक कही शकाय नहीं। 4 मा उपरांत : 'बृहत्पड्दर्शनसमुच्चय', नामनो ग्रन्थ पस आ: सिद्धसेननो चेलो कहेवाय छे, 'जैन ग्रन्थावली'मां-पथ वेनो उल्लेख छ / 'तत्त्वार्थभाष्यवृत्ति' मां मा. सिद्धसेननी रवेली 'प्रमाणहार्जिशिकामांनो- एक लोक उधृत करायो छ / 'प्रमाण शामिंशिका मां मा सिद्धसेने केवलीना प्रमाण-विशे: लघु-होय ए संभक्ति छे। .. --- - मा० सिद्धसेने व्याकरण, ज्योतिष वगेरे विषयो पर पण प्रन्यो रख्या होय ए असमवित नथी / ते. सिवाय. पण मा०सिद्धसेननी पणी कृतिओ हो जे भाषणने उपलब्ध थती नथी परन्तु प्राचीन लेखको तेमाथी उद्धरणो आपे छे।। कल्याणमंदिरस्तोत्र' पार्श्वनाथनी, स्तुतिरूपे छे. ने, तेमां 14. लोक छे, तेना पर 11 टोकाओ उपलब्ध छे। बधी प्रमाणमां अर्वाचीन छ / भक्तामस्तोत्र' सापे। एजें साम्म स्पष्ट छ / 'कल्याणमन्दिरनी पुष्पदन्त विचितः शिवमहिम्नस्तोत्र' साये पण सरसामयो करी शकस्य / 'प्रबधकोस 'कल्याणमन्दिर ने द्वात्रि शिका-कहेछे पण तेनु माजनुं वरुप जोतां एम नणातुं नमो NY
SR No.004300
Book TitleDwatrinshad Dwatrinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherVijaylavanyasuri Granthmala
Publication Year1977
Total Pages694
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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