________________ कालोमा न्यायावतार मते महावीरद्वात्रिशिका'नो समावेश यतो नथी। मा० सिद्धसेननां कुमुदचंद्र, क्षपणक, गंधहस्ति वगेरे उपनामो हता एवं दर्शाववामां आवे छे / 'कल्याणमंदिरस्तोत्र' अने 'चिकुरद्वात्रिंशिका' कुमुदचंद्र नाम धरावे छे / गन्धहस्तिथी जेनो निर्देश करायो छे ते कोई अन्य सिद्धसेन लागे छ / 'अनेकार्थध्वनिमञ्जरी' के 'एकाक्षरीकोश, 'उणादिसूत्रवृत्ति' अने 'शब्दानुशासनभाष्य' आ क्षपणकनी कृतिओ छ / गणक कालिदासकृत 'ज्योतिविंदाभरण' प्रमाणे क्षपणक एज आ• सिद्धसेन, परंतु आपणो पासे मा० सिद्धसेनने क्षपणक साबीत करे तेवां निश्चित प्रमाणो नथी / प्रबंधग्रथोमों पण क्षपणकना उल्लेख नथी। 'विषोग्रग्रहशमनविधि' नामर्नु एक आयुर्वेद परचं पुस्तक प्रमा मा० सिद्धसेननुं रचेलं कहेवाय छे / मा० सिद्धसेननुं आयुर्वेद विषयक ज्ञान सारं हशे एम तो द्वात्रिंशिकाओ परथी पण जणाय छे परन्तु आ कृति आपणी समक्ष नथी अने तेथी तेना कर्तृत्वनो निर्णय करवो अशक्य छ / केशवसे नसूरि तेमना ‘कर्णामृतपुराण'मां दर्शीवे छे के सिद्धसेने 'नीतिसारपुराण' रचेलं / आ० सिद्धसेन नो कवि तरीकेनी असाधारण प्रसिद्धि मत्यारे तो मात्र तेमनी स्तुति परक 'द्वात्रिंशिकाओ' पर ज आधार राखे छे / आपणने सहजरीते कोईक मोटो कृति तेमणे रची होय एवो अपेक्षा रहे छे परंतु मावा एकलदोंकल उल्लेख परथो कशो निर्णय लई शकाय नहीं।