________________ बीजां पण केटलांक प्रमाणो छे जे विक्रमादित्यने इ.स. पूर्वेनो पहेली सदीनां स्थापी आपे छे / इ.स. 87 नी आसपास थयेल 'गाथासप्तशती' नो संपादक लेखक-हाल विक्रमादित्यना दाननो उल्लेख करे छे / वराहमिहिर प्राचीन गर्गर्नु अवतरण आपे छे भने विक्रमादित्य ते पूर्वे हतो / आ ए ज राजा छे जेणे विक्रम (कृत) संवत् स्थाप्यो भने जाणे कृतयुगनुं पुनः अवतरण थयुं / 'गुणवचनद्वात्रिंशिका' ना केटलाक उल्लेखो आ वातनी स्पष्ट पुष्टि आपे के (जुओ श्लोक 17-24) / डॉ० क्राउझे शिलालेखोने आधारे मा उल्लेखोने समुद्रगुप्त परक माने छे। तेमणे तारवेला 26 मुद्दामओमांथी एकेने अकाट्य प्रमाणरूपे स्वीकारी शकाय एम नथी जेमांथी स्पष्टपणे समुद्रगुप्तनो ज निर्देश मळतो होय। - चंद्रगुप्त बीजाने विक्रमादित्य तरीके स्वीकारवामां सहुथी मोटी आपत्ति ए छे के एनुं चारित्र्य सारं नहोतुं अने आ० सिद्धसेने बेनी 'गुणवचनद्वात्रिंशिका' मां प्रशंसा करी छे ते व्यक्ति चन्द्रगुप्त न ज होइ शके एम लाग्या करे छे / वळी, नकारात्मक प्रमाणनो विचार करीए तो परंपरामा क्याय विक्रमादित्यनुं वधारे जाणीतुं अपर नाम चंद्रगुप्त के समुद्रगुप्त प्राप्त थतुं नथी / शा माटें भावो एकाद पण उल्लेख नथी मळतो ? आधुनिक अत्रत्य विद्वानो हवे कालिदासने पण इ.स. पूर्वेनी प्रथम सदीमा मकवाना पक्षना छे, ए न कारणोसर मा० सिद्ध