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________________ जगत्प्रसिद्धबोधस्य वृषभस्येव निस्तुषाः। बोधयन्ति सतां बुद्धिं सिद्धसेनस्य सूक्तयः॥ 30 इन्द्रचन्द्रार्कजैनेन्द्रव्यापिव्याकरणेक्षिणः। देवस्य देववन्द्यस्य न वन्द्यन्ते गिरः कथम्॥ 31 वज्रसूरेर्विचारिण्यः सहेत्वोर्बन्धमोक्षयोः। प्रमाणं धर्मशास्त्राणां प्रवक्तृणामिवोक्तयः॥ 32 महासेनस्य मधुरा शीलालंकारधारिणी। कथा न वर्णिता केन वनितेव सुलोचना॥ 33 कृतपद्मोदयोद्योता प्रत्यहं परिवर्तिता। मूर्तिः काव्यमयी लोके रवेरिव रवेः प्रियाः॥ 34 वरांगनेव सर्वांगैर्वरांगचरितार्थवाक् / कस्य नोत्पादयेद् गाढमनुरागं स्वगोचरम्॥ 35 शान्तस्यापि च वक्रोक्ती रम्योत्प्रेक्षाबलान्मनः। कस्य नोद्घाटितेऽन्वर्थे रमणीयेऽनुरंजयेत्॥ 36 योऽशेषोक्तिविशेषेषु विशेषः पद्यगद्ययोः। विशेषवादिता तस्य विशेषत्रयवादिनः॥ 37 आकूपारं यशो लोके प्रभाचन्द्रोदयोज्वलम्। गुरोः कुमारसेनस्य विचरत्यजितात्मकम्॥ 38 जितात्मपरलोकस्य कवीनां चक्रवर्तिनः। वीरसेनगुरोः कीर्तिरकलंकावभासते॥ 39 याऽमिताभ्युदये पार्श्वे जिनेन्द्रगुणसंस्तुतिः। स्वामिनो जिनसेनस्य कीर्तिं संकीर्तयस्यसौ॥ 40 वर्धमानपुराणोद्यदादित्योक्तिगमास्तयः। . प्रस्फुरन्ति गिरीशान्तः-स्फुटस्फटिकभित्तिषु॥ 1/41 . हरिवंशपुराणकार ने इन पद्यों में जिन आचार्य-कवियों का वर्णन किया है उनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार से है(१) समन्तभद्र :. जैन साहित्य में स्वामी समन्तभद्र प्रथम संस्कृत कवि और स्तुतिकार हैं। ये कवि होने के साथ प्रकाण्ड दार्शनिक और गम्भीर चिन्तक भी थे। समन्तभद्र क्षत्रिय-राजपुत्र थे। इनके जन्म का नाम शान्तिवर्मा था किन्तु बाद में आप 'समन्तभद्र' इस प्रसिद्ध एवं
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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