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________________ श्रुतिमधुर नाम से लोक में प्रसिद्ध हुए। इनके गुरु का नाम तथा इनकी गुरु परम्परा अभी तक ज्ञात नहीं है। वादी, वाग्मी तथा कवि होने के साथ-साथ स्तुतिकार होने की ख्याति भी आपको प्राप्त है। आप दर्शनशास्त्र के तलद्रष्टा और विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न थे। एक परिचय पद्य में तो आपको दैवज्ञ, वैद्य, मान्त्रिक और तान्त्रिक होने के साथ आज्ञासिद्ध तथा सिद्ध-सारस्वत भी बतलाया है ! आपकी गर्जना से सभी वादी-जन काँपते थे। आपने अनेक देशों में विहार किया तथा अनेक वादियों को पराजित कर उन्हें सन्मार्ग दिखाया। आपकी उपलब्ध कृतियाँ भी जैन साहित्य में प्रसिद्ध रही हैं वे हैं—बृहत्स्वयंभू स्तोत्र, युक्त्यनुशासन, रत्नकरण्डश्रावकाचार, आप्तमीमांसा, स्तुतिविद्या, देवागम स्तोत्र, जीवसिद्धि, तत्वानुशासन, प्राकृत-व्याकरण, प्रमाण-पदार्थ, कर्मप्राभृतटीका, गन्धहस्ति महाभाष्य।२२. (2) सिद्धसेन : जिनसेन द्वारा उल्लेखित सिद्धसेन को श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों ही परम्पराएँ अपना मानती हैं। सिद्धसेन का समय विक्रम संवत् 625 के आसपास माना जाता है। उनके द्वारा लिखित दो ग्रन्थों का ही अभी तक पता चला है वे दो रचनायें "सन्मतिसूत्र" तथा "कल्याणमन्दिर स्तोत्र" हैं। सिद्धसेन नामक एक से अधिक विद्वान् हुए हैं। सन्मति सूत्र तथा कल्याण मन्दिर स्तोत्र जैसे जैन ग्रन्थों के रचयिता दिगम्बर सम्प्रदाय में हुए हैं। इनके साथ दिवाकर विशेषण नहीं हैं परन्तु दिवाकर विशेषण श्वेताम्बर सम्प्रदाय में हुए सिद्धसेन के साथ पाया जाता है जिनकी कुछ द्वात्रिंशिकाएँ, न्यायावतार आदि रचनाएँ हैं।२३ (3) देवनन्दि : देवनन्दि पूज्यपाद का यह दूसरा नाम है। आचार्य जिनसेन ने अपने आदिपुराण में इनकी स्तुति करते हुए लिखा है कि जो कवियों में तीर्थंकर के समान थे अथवा जिन्होंने कवियों का पथ प्रदर्शन करने के लिए लक्षण ग्रन्थ की रचना की थी तथा जिनका वचनरूपी तीर्थ विद्वानों के शब्द-सम्बन्धी दोषों को नष्ट करने वाला है ऐसे उन देवनन्दि आचार्य का कौन वर्णन कर सकता है?२४ ___आचार्य जिनसेन (प्रथम) ने पूज्यपाद का स्मरण करते कहा है कि "जो इन्द्र, चन्द्र, अर्क और जैनेन्द्र व्याकरण का अवलोकन करने वाली है, ऐसी देववन्द्य देवनन्दि की वाणी क्यों नहीं वन्दनीय है।" . इनका जीवन परिचय चन्द्रय्य कवि के 'पूज्यपाद चरित' तथा देवचन्द्र के "राजवलिकथे" नामक ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। श्रवणवेलगोला के शिलालेखों में इनके नामों के सम्बन्ध में उल्लेख मिलते हैं। इन्हें बुद्धि की प्रखरता के कारण जिनेन्द्रबुद्धि तथा देवों के द्वारा चरणों की पूजा किये जाने से पूज्यपाद कहा गया है। अब तक
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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