________________ * 4. पद्मपुराण रविषेणाचार्य पद्मपुराण भट्टारक सोमसेन पद्मपुराण धर्मकीर्ति पाण्डवपुराण ब्र० जिनदास 8. पाण्डवपुराण भट्टारक शुभचन्द्र मुनिसुव्रतपुराण ब्र० कृष्णदास 10. हरिवंशपुराण जिनसेनाचार्य 11. हरिवंशपुराण ब्र० जिनदासं 12. हरिवंशपुराण पण्डित नेमिदत्त 13. हरिवंशपुराण भट्टारक श्रीभूषण 14. विमलनाथपुराण ब्र० कृष्णदास इन पुराणों का साहित्य जगत में अपना अनूठा स्थान है। कोशकारों ने पुराणों के ... पांच लक्षण माने हैं अर्थात् पुराण वह है जिसमें सृष्टि, प्रलय, वंश, मन्वन्तर और वंशों की परम्पराओं का वर्णन है। इन पाँचों लक्षणों की विशद व्याख्या भागवतपुराण में भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। इन पाँचों लक्षणों का निर्वाह करते हुए जैन पुराण अपने-अपने काल के विश्व-कोश हैं। इनमें नाना कथानकों, तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक स्थिति तथा उस समय की संस्कृति का सुन्दर निरूपण हुआ है। इसके साथ-साथ तत्कालीन रहनसहन, खान-पान, वेशभूषा, जाति-व्यवस्था, जीवनादर्श इत्यादि के सम्बन्ध में भी सविस्तार चर्चा की गई है। ये ग्रन्थ पुराण नाम से प्रसिद्ध होने के बावजूद भी मनोरम काव्य-ग्रन्थ हैं जिनमें जीवन-मरण, विवाह, उत्सव, सन्तानोत्पत्ति, जलक्रीड़ा, वन-क्रीड़ा, संयोग-वियोग, आक्रमण, शांति इत्यादि के चित्रण मिलते हैं। इसके साथ-साथ पुराणकारों ने इन ग्रन्थों में जैन दर्शन का निरूपण भी बड़ी सहजता के साथ किया है, जो उल्लेख्य है। जैनों की संस्कृत पुराण-परम्परा में जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण को उल्लेखनीय एवं महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस पुराण का प्रभाव जैनों की अनेक पुराण आदि कृतियों पर स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे प्रसिद्ध ग्रन्थ के रचयिता जिनसेनाचार्य का व्यक्तित्व एवं कृतित्व हम इस परिच्छेद में देखेंगे। आचार्य जिनसेन-व्यक्तित्व :___ जैन-समाज में श्वेताम्बर एवं दिगम्बर, दो प्रसिद्ध सम्प्रदाय हैं। आचार्य जिनसेन स्वामी दिगम्बर-सम्प्रदाय से सम्बन्धित मुनि थे। इन्होंने स्वयं अपने ग्रन्थ में अपने संघ =660