________________ 1. आचार्य जिनसेन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व जैन विद्वानों द्वारा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि विभिन्न भाषाओं में विशाल साहित्य का निर्माण किया गया है। इन्होंने न केवल धर्म-सिद्धान्त वरन् आचार, स्तोत्र, नीति, पूजा-पाठ, काव्य, पुराण, दर्शन, अध्यात्म, कथा-साहित्य, ज्योतिष, आयुर्वेद, गणित एवं मंत्र-शास्त्र जैसे विभिन्न विषयों पर भी अपनी लेखनी चलाकर जैन साहित्यागार को समृद्ध बनाया है परन्तु दुर्भाग्य से भारतीय विद्वानों द्वारा इन ग्रन्थों की तरफ विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। आज भी सैकड़ों नहीं, हजारों ग्रन्थ अप्रकाशित पड़े हैं। ___ "जैनों के इन शास्त्रागारों में संस्कृत भाषा के सैकड़ों उत्कृष्ट ग्रन्थ संग्रहित पड़े हैं जिनके आधार पर साहित्यिक जगत के नहीं किन्तु इतिहास, संस्कृति एवं कला के भी नये पृष्ठ खुल सकते हैं एवं जिनका अध्ययन भारतीय साहित्य के लिए एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सिद्ध हो सकती है।"२ . . इन जैन साहित्यकारों ने प्राकृत एवं अपभ्रंश की अपेक्षा संस्कृत में "पुराण-साहित्य" अत्यधिक लिखा है, जिनका जैन समाज में विशेष उल्लेखनीय, प्रशंसनीय एवं लोकप्रिय स्थान रहा है। पिछले एक हजार वर्षों से भी अधिक समय से इनका पठन-पाठन तथा स्वाध्याय का कार्य जैन-जगत में हो रहा है। जैनों के इस पुराण साहित्य में इनके सम्प्रदाय में वर्णित तिरेसठ शलाकापुरुषों तथा अन्य विशिष्ट पुण्यात्माओं को उल्लेखित किया गया है। वैसे तो पुराण संज्ञक अनेक ग्रन्थ जैन समाज में प्रख्यात रहे हैं परन्तु इन पुराणों में महापुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण तथा पाण्डवपुराण को सर्वाधिक ख्याति मिली है। महापुराण के आदिपुराण तथा उत्तरपुराण के दो भाग हैं। काव्य, चरित-कथा एवं नाटक जैसी अनेक चरित-प्रधान कृतियों का मूल स्रोत इसी पुराण साहित्य में दृष्टिगोचर होता है। प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, हिन्दी एवं अनेक भारतीय भाषाओं में ये पुराण ग्रन्थ निरूपित हैं परन्तु जैनों के संस्कृत भाषा में लिखे महत्त्वपूर्ण, लोकप्रिय तथा विशेष उल्लेखित पुराण-ग्रन्थ निम्न हैं१. आदिपुराण जिनसेनाचार्य 2. आदिपुराण अरुणमणि ... 3. उत्तरपुराण गुणभदाचार्य