________________ (11) बलभद्र चौपाई : इस ग्रन्थ के रचयिता "यशोधर" थे। ये काष्ठा संघ के जैन साधु थे। इन्होंने विजयसेन मुनि से दीक्षा ग्रहण कर आजन्म ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया था। इनका. समय वि०सं० 1520 से 1590 का कहा जाता है।१२३ इस ग्रन्थ में 189 पद्यों का संग्रह है। इसमें कृष्ण के बड़े भाई बलभद्र के चरित्र का वर्णन है। इस ग्रन्थ की भाषा राजस्थानी प्रभावित हिन्दी है। इसमें ढाल, दोहा व चौपाई छन्दों का प्रयोग हुआ है। द्वारिका के वैभव का वर्णन देखिये * याचक जननि देउ दान, न हीयउ हरष नहीं अभिमान। . . सूर सुभट एक दीसि घणा, सज्जन लोक नहीं दुर्जणा॥१२४ (12) हरिवंश पुराण : प्रस्तुत कृति के रचयिता "शालीवाहन" थे। इन्होंने जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण (संस्कृत) के आधार पर इस ग्रन्थ की रचना की है। कवि ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है। इस ग्रन्थ की रचना वि०सं० 1693 सन् 1638 में पूर्ण हुई। इस कृति की हस्तलिखित प्रतियाँ कई स्थानों पर उपलब्ध हैं।२५ इस ग्रन्थ के 12 से 26 तक की संधियों में कृष्ण-चरित का वर्णन है। कृति की भाषा राजस्थानी प्रभावित ब्रज भाषा है। यह दोहा, चौपाई, छन्दों से रचित है। कंस की मल्लशाला में किशोर कृष्ण का पराक्रम कवि के शब्दों में दृष्टव्य है चंडूर मल्ल उठ्यो काल समान, बज्रमुष्टि दैयत समान। जानि कृष्ण दोनों कर गहै, फेर पाई धरती पर वहै // 1780-81 // (13) नेमीश्वर रास : इस ग्रन्थ के रचयिता नेमिचन्द हैं। इसका रचना काल ई०स० 1712 माना जाता है। इसमें भी जिनसेनकृत हरिवंशपुराणानुसार कृष्ण-चरित का वर्णन हुआ है। इसमें श्री कृष्ण का जन्म, उनकी बाल-लीलाएँ, कंसवध, यादवों का द्वारिका-निवास, रुक्मिणी हरण, शिशुपाल-वध, नेमिनाथ का जन्म, जरासंध-युद्ध, द्रौपदी-हरण, कृष्ण द्वारा उसे वापिस लाना, नेमिनाथ का गृहत्याग, तप व कैवल्यज्ञान, द्वारिका का विनाश तथा श्री कृष्ण का परमधामगमन इत्यादि विविध प्रसंगों का क्रमशः वर्णन हुआ है। "श्रीकृष्ण" कृति के प्रमुख पात्र हैं। उनके वीरतापूर्ण कृत्यों का कवि ने सुन्दर वर्णन किया है। (14) हरिवंशपुराण तथा उत्तरपुराण : कृष्ण चरित्र सम्बन्धी इन दोनों कृतियों के कृतिकार खुशालचन्द्र काला थे। इन दोनों हिन्दी काव्य कृतियों की हस्तलिखित प्रतियाँ जैन भण्डारों में उपलब्ध है। ये ग्रन्थ -