________________ इस ग्रन्थ का मूलाधार भी जिनसेन कृत हरिवंशपुराण रहा है। कवि ने हरिवंश का प्रारम्भ, पाण्डवों की उत्पत्ति, वसुदेव चरित्र, कृष्ण चरित्र, नेमिनाथ चरित्र, प्रद्युम्न चरित्र, पाण्डव-चरित्र आदि का वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है। काव्यत्व की दृष्टि से भी यह सुन्दर एवं सरस कृति रही है। काव्य की भाषा परिनिष्ठित अपभ्रंश रही है। (9) गजसुकुमाल रास : यह ग्रन्थ आदिकालीन हिन्दी की रचना है। इसका रचनाकाल ई०स० 1258-68 के बीच अनुमानित किया गया है। इस कृति के रचयिता कवि "देवेन्द्रसूरि" थे। इनके गुरु का नाम जगच्चन्द्रसूरि था। इस रास काव्य में श्री कृष्ण के अनुज सहोदर मुनि गजसुकुमाल का चरित्र-वर्णन है। जैन परम्परा में गजसुकुमाल का आख्यान प्रसिद्ध है। इसमें अरिष्टनेमि का द्वारिका आना, कृष्ण के छहों सहोदरों को देखकर देवकी की उदासी, श्री कृष्ण द्वारा तप, समयानुसार देवकी के पुत्रोत्पत्ति, गजसुकुमाल का विवाह- सम्बन्ध, अरिष्टनेमि के उपदेश से उनका वैराग्य एवं दीक्षा आदि का वर्णन 34 छन्दों में वर्णित है। कवि ने कृष्ण द्वारा चाणूरमल्ल, कंस व जरासंध इत्यादि के हनन का भी स्पष्ट उल्लेख किया है। कृष्ण का वासुदेव स्वरूप देखिए संख चक्क गय पहरण धारा। कंस जराहिव कय संहारा॥ जिब चाणउरि मल्लु वियरिउ। जरासिंधु बलवंतउ घाडिउ॥१२१ इस कृति की भाषा परवर्ती अपभ्रंश या प्राचीन राजस्थानी है जो कि हिन्दी भाषा का आदिकालिक स्वरूप है। (10) प्रद्युम्न चरित : यह कृति "सधारू" की रचना है। इसका रचना काल ईसवी सन् 1354 माना गया है। इस कृति में रुक्मिणी से उत्पन्न पुत्र प्रद्युम्न के जीवन-चरित का निरूपण मिलता है। ग्रन्थ के प्रारम में द्वारिका के वैभव व श्री कृष्ण की शक्ति-सम्पन्नता का वर्णन है। इस कृति में 6 सर्ग है, जो वीर रस से भरे पड़े हैं। कृष्ण शिशुपाल-युद्ध आदि का इसमें विशद वर्णन हुआ है। यह ब्रजभाषा का काव्य है, ब्रजभाषा के समस्त लक्षण इस ग्रन्थ में देखे जा सकते हैं। इस काव्य का मुख्य छन्द चौपाई है, इसके अलावा ध्रुवक, वस्तुबन्ध, दोहा, सोरठा इत्यादि छन्दों का भी प्रयोग यथा सन्दर्भ हुआ है। युद्ध भूमि में खड्ग लेकर श्री कृष्ण कैसे शोभित होते हैं, देखिए इस कृति का एक पद तवतिहि घनहर घालिउ रालि, चन्द्र हंसकर लीयो संभालि। वीजु समिसु चमकइ करवालु, जाणौ सु जीभ पसारे कालु॥ जबति खरग हाथ हरि लयउ, चन्द्र रयणि चांबड़ कर गहिउ। रथ ते उतरि चले भर जाम, तीनि भुवन अकुलाने ताम॥१२२