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________________ जन्म, कालसंवर द्वारा अपहरण, विद्याध्ययन, पुनः उसका माता-पिता से मिलना इत्यादि अनेक प्रसंगों का निरूपण इस ग्रन्थ में हुआ है। कालान्तर में हिन्दी में भी सुधारु का प्रद्युम्न चरित, देवेन्द्रकीर्ति का प्रद्युम्न-प्रबन्ध इसके अनुकरण पर लिखे गये हैं। .. (5) त्रिषष्टिशलाकापुरुष-चरित : श्वेताम्बर जैनाचार्य हेमचन्द्र का संस्कृत भाषा में निबद्ध त्रिषष्टिशलाका पुरुषों का चरित वर्णन करने वाला यह काव्य ग्रन्थ है। हेमचन्द्राचार्य महान् विद्वान, संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं के ज्ञाता थे। इनका जीवन वृत्त वि०सं० 1145 से 1129 तक माना जाता है।१६ इस ग्रन्थ में 10 पर्व है। श्री कृष्ण-चरित्र का वर्णन आठवें पर्व में हुआ है। इसी पर्व में नेमिनाथ, बलदेव, जरासंध आदि के भी चरित्र-वर्णन है। जैन श्वेताम्बर सम्प्रदाय में यह ग्रन्थ अत्यधिक प्रसिद्ध रहा है। इस ग्रन्थ का भी "स्रोतग्रन्थ" के रूप में अनेक जैन कवियों ने उपयोग किया है। (6) रिठ्नेमिचरित्र (अरिष्टनेमि-चरित) : यह अपभ्रंश भाषा में निरूपित महत्त्वपूर्ण काव्य-ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ के रचयिता अपभ्रंश साहित्य के प्रथम कवि स्वयंभू थे। इनका जीवन-वृत्त वि०सं०.६३४ से 840 के मध्य माना जाता है। इस ग्रन्थ में कृष्ण-कथा का वर्णन है। इसके यादव काण्ड में कृष्ण चरित्र के साथ अरिष्टनेमि तथा प्रद्युम्न इत्यादि का भी चरित्र वर्णन मिलता है। युद्ध काण्ड में कौरव-पाण्डवों के युद्ध का सुन्दर वर्णन मिलता है। यह अप्रकाशित रचना है। इसकी एक प्रति शास्त्र भण्डार श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, छोटा दीवानजी जयपुर में उपलब्ध है।११७ (7) तिसट्ठिमहापुरिस-गुणालंकार (त्रिषष्टि महापुरुष गुणालंकार) : यह अपभ्रंश भाषा में रचित महाकवि "पुष्पदन्त" की विशालकाय काव्य-कृति है। इसमें जैन परम्परागत 63 शलाकापुरुषों के चरित्रों का विशद वर्णन हुआ है। इस ग्रन्थ में 122 सर्ग (संधिया) एवं 20 हजार श्लोक हैं। इसका रचनाकाल नाथुराम प्रेमीजी ने वि०सं० 881 से 886 स्वीकार किया है।११८ यह कृति भी आदिपुराण तथा उत्तरपुराण इन दो खण्डों में विभक्त है। उत्तरपुराण में रामचरित तथा कृष्णचरित का वर्णन मिलता है। इसके 81 से 92 तक के सर्गों में जैन परम्परागत कृष्णचरित का वर्णन हुआ है। इस ग्रन्थ का मूलाधार जिनसेन गुणभद्र कृत "महापुराण" रहा है। (8) नेमिणाह-चरित्र 19 ( हरिवंश पुराण) : यह महाकवि रइधू की अपभ्रंश भाषा की रचना है। ये अपने समय के बड़े प्रभावशाली एवं विद्वान पंडित थे। इनका समय विक्रम की 15-16 वीं शताब्दी माना जाता है। इनके द्वारा रचित इस ग्रन्थ की एक हस्तलिखित प्रति जैनसिद्धान्त-भवन, आरा में उपलब्ध है।१२०
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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