________________ विषयक रचनाओं का निरूपण किया है। डॉ० रामशरण गौड ने इस विषय में अनुसंधानात्मक दृष्टिकोण से कृतियों एवं कृतिकारों का नामोल्लेख किया है। इस युग में तुलसीराम शर्मा दिनेश रचित पुरुषोत्तम, प्रद्युम्न टुंगा का कृष्ण-चरित-मानस, द्वारिकाप्रसाद मिश्र का कृष्णायन, मैथिलीशरण गुप्त का द्वापर, अजय शर्मा का फेरि मिलिवो, पं० घासीराम व्यास का श्याम-सन्देश, चन्द्रभानुसिंह रज का नेह निकुंज, रामावतार पोद्दार का सूरश्याम, गिरिराजदत्त शुक्ल गिरिश का प्रयाण, अमृतलाल चतुर्वेदी का श्याम-सन्देश, डॉ० रामशंकर शुक्ल कृत उद्धव-शतक आदि इस युग की उल्लेख्य रचनाएँ हैं।०७ इसके अतिरिक्त गयाप्रसाद द्विवेदी ने मधुपुरी, राधा और उसके जीवन की घटनाओं के आधार पर दाऊदयाल गुप्त ने राधा, राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह ने राधाकृष्ण, रांगेय राघव ने पांचाली, पं० हृषिकेश चतुर्वेदी ने श्रीरामकृष्ण काव्य एवं श्रीरामकृष्णायन, बलदेव प्रसाद मिश्र ने श्याम शतक, श्यामसुन्दरलाल ने श्याम-सन्देश एवं धर्मवीर भारती ने कनुप्रिया का प्रणयन किया। इसी कृष्ण-काव्य परम्परा में नरेशचन्द्र भंजन द्वारा रचित महारास, नवकिशोर शर्मा की जरासंध, माखनलाल चतुर्वेदी की वेणु लो गूंजे धरा, ब्रजचन्द कपूर कृत ब्रजचन्द-विनोद, प्रेम भण्डारी रचित भगवान् श्री कृष्णलीलामृत, सियाराम शरण गुप्त की गोपिका, श्रीनाथ द्विवेदी की सारथी-कृष्ण, श्रीराम नारायण अग्रवाल की कूबरी, चन्द्रशेखर पाण्डेय कृत द्वारिका प्रवेश, देवीरत्न अवस्थी करील की मधुपर्क, डॉ० कृष्णनन्दन पीयूष की योग-निद्रा, उमाकान्त मालवीय की देवकी तथा जानकीवल्लभ शास्त्री की राधा एवं अनादि मिश्र की प्रश्नों के सूर्योदय महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं।२०४ निष्कर्ष : उपर्युक्त प्रकार से हिन्दी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की एक विशाल परम्परा रही है। आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल एवं आधुनिक काल के अनेक कवियों ने श्री कृष्ण की लीलाओं का चित्रण कर अपने जीवन को धन्य बनाया है। इन कवियों ने श्री कृष्ण के जीवन के विभिन्न स्वरूपों का चित्रण कर उनके व्यक्तित्व को व्यापकता प्रदान की है। इतना ही नहीं इन कवियों ने श्री कृष्ण भक्ति को जन-जन तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण कार्य भी किया है। हिन्दी साहित्य इन कवियों का सदा-सदा ऋणी रहेगा; क्योंकि इन्होंने न केवल श्री कृष्ण-लीला का निरूपण कर उनकी भक्ति का प्रचार-प्रसार किया वरन् हिन्दी साहित्य को भी समृद्धशाली बनाकर उसे अत्यधिक ख्याति प्रदान की है। हिन्दी के अलावा भी अनेक भारतीय भाषाओं में श्री कृष्ण चरित्र का विशद वर्णन हुआ है। इन भाषाओं में तेलगू, मलयालम, कन्नड़, मराठी, बंगला, उड़िया, असमिया, गुजराती, मैथिली, राजस्थानी, पंजाबी, कश्मीरी एवं उर्दू इत्यादि की अपनी अलग से परम्परा रही है परन्तु इन भाषाओं में वर्णित कृष्ण-भक्ति का निरूपण विषय की मर्यादानुसार अपेक्षित नहीं है।