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________________ भारतेन्दु युग : आधुनिक काल के कृष्ण भक्त कवियों में सर्वप्रथम भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का नाम उल्लेखनीय है। ये सर्वतोमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार एवं आधुनिक गद्य के पिता थे। इन्होंने गद्य एवं पद्य दोनों में सर्जन कार्य किया है। इनकी काव्य कृतियाँ तो सत्तर हैं परन्तु कृष्ण-लीला सम्बन्धी कृतियाँ प्रेममालिका, प्रेमतरंग, प्रेममाधुरी, प्रेमपलाप, राग संग्रह के पद तथा स्फुट कविताएँ प्रसिद्ध हैं। इनमें इन्होंने राधा-कृष्ण की विभिन्न लीलाओं को लेकर डेढ़ हजार पदों का प्रणयन किया है। इस युग में भारतेन्दुजी के अतिरिक्त बद्रीनारायण चौधरी, प्रेमघन की आख्यानक कविता अलौकिक लीला एवं अन्य स्फुट पद, मुंशी साहबसिंह भट्टनागर का प्रबन्ध काव्य, प्रेम-अभिलाषा, अम्बिकादत्त रचित सुकवि सतसई एवं कंसवध, राधाचरण गोस्वामी के कृष्ण स्तुति परक पद एवं भ्रमरगीत, धनारंग दूबे का कृष्णरामायण,नवनीत चतुर्वेदी की पुस्तक कुब्जा-पचीसी, रसीले का उधौ ब्रजगमन चरित्र, पं० रामसेवक चौबे की माधव माधुरी तथा द्वारका प्रसाद का द्वारकाशतक भी कृष्ण काव्य की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं।१०६ उपर्युक्त कवियों की रचनाओं के अतिरिक्त प्रतापनारायण मिश्र के स्फुट पद अम्बिकादत्त व्यास की बिहारी-बिहार तथा प्रताप लहरी, सुधाकर त्रिवेदी की माधवपंचक तथा राधा कृष्ण दान लीला, महाराज रामसिंह कृत मोहन विनोद, गोविन्द चतुर्वेदी कृत "ब्रजवानी", विसाहू रामकृत कृष्णायन, गोविन्द गिल्लाभाई की राधामुख षोडषी भी इस युग की अन्य कृष्ण-भक्ति की महत्त्वपूर्ण उल्लेख्य कृतियाँ हैं। इसके अलावा भी अनेक कवियों ने राधा-कृष्ण से सम्बन्धित स्फुट पदों का संकलन किया है। द्विवेदी युग : इस युग में कृष्ण काव्य की श्रृंखला में "हरिऔध" का प्रिय-प्रवास विशिष्ट उल्लेखनीय आदर्श कृति रही है। इस युग के अन्य कवियों में जगन्नाथदास "रत्नाकर" का हिंडौला, उद्धव शतक, शृंगारी लहरी एवं अष्टक-काव्य,, पं० सत्यनारायण कविरत्न का भ्रमरदूत एवं कृष्ण विषयक स्फुट पद, राव कृष्णदास कृत "ब्रजरज" आदि उल्लेख्य रचना है। कृष्ण विषयक रचनाओं में पं० किशोरलाल गोस्वामी की सतसई, श्री रूपनारायण पाण्डेय की. रचना श्रीकृष्ण चरित्र, ललनपिया की ललन-सागर, वियोगीहरि की प्रेमशतक, प्रेम-पथिक तथा प्रेमांजलि, मुकुन्दिलाल की मुकुन्द विलास, गजराज सिंह की अजिर-विहार, श्री बलदेव की सावन-छटा, जगन्नाथभानु की उपालभ्य अष्टक, रामदास गौड का कृष्णावतार एवं रामदत्त शर्मा की उषा-हरण भी युग की उल्लेखनीय रचनाएँ हैं। द्विवेदी परवर्ती-युग :- भारतेन्दु युग एवं द्विवेदी युग के पश्चात् भी हिन्दी साहित्य में कृष्ण काव्य की परम्परा निरन्तर अबाध रूप से चलती रही है। इस युग के अनेक कवियों ने कृष्ण
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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