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________________ . नाचना कर कंकन कटि किंकिनी बाजे। मोर पंख सिर मुकुट विराजे। कर तन बेनु, कमल दल लोचन। उर वनमाल वनित ये मोचन। इसके बाद आसानन्द, जिन्होंने हरिचरित्र के ४६वें अध्याय से प्रारम्भ कर उसे पूर्ण किया। तत्पश्चात् भीम नामक कवि जिनकी हरिलीला, सोइकला, डंगवै पर्व तथा चक्रव्यूह कथा आदि रचनाएँ रही हैं। बलवीर नामक कवि ने भी दंगवपर्व नामक ग्रन्थ में महाभारत के युद्ध का अवधि भाषा में वर्णन किया है। अवधि में रचित कृष्ण काव्य के सर्वश्रेष्ठ कवि लक्षदास माने जाते हैं। कृष्णसागर, भागवत पुराणसार, दोहावली तथा फुटकर पद आदि इनके उपलब्ध ग्रन्थ हैं। इनके कृष्ण चरित्र में विभिन्न पक्षों का सुन्दर चित्रण मिलता है। इन्होंने अनेक छन्दों का प्रयोग कर उत्कृष्ट काव्य का निरूपण किया है। भक्ति-भाव की गहनता व तन्मयता अवलोकनीय है। लक्षदास के उपरान्त अनेक कवियों ने अवधी में कृष्ण काव्य की रचना की है। विषय की व्यापकता की दृष्टि से इन कवियों का नामोल्लेख करना ही उचित रहेगा। इन कवियों में नरहरि महाराज, सदानन्द, बाबा रघुनाथ रामसनेही, सबलसिंह चौहान, गोविन्द कवि, ज्वाला प्रसाद, कवि विसाहूराम, राजेन्द्रप्रसाद, नारायणप्रसाद मिश्र, श्री लाल उपाध्याय आदि प्रसिद्ध रहे हैं। इन कवियों ने अपनी कृतियों में कृष्ण की विशुद्ध भक्ति भाव से, श्री कृष्ण चरित्र के विविध पहलुओं का सुन्दर एवं सरस वर्णन किया है। इनमें श्री कृष्ण की पूज्य भावना समाहित रही है। कृष्ण मर्यादावादी दिखाई देते हैं। इनके ग्रन्थ मुख्य रूप से दोहा-चौपाई आदि छन्दों में ही वर्णित हैं। इन ग्रन्थों में यद्यपि तुलसी या सर जैसा उच्च काव्यत्व नहीं रहा है, अधिकांश रचनाएँ साधारण कोटि की हैं परन्तु फिर भी यह काव्य कृष्ण-चरित्र का एक ऐसा पक्ष प्रस्तुत करता है जो ब्रज भाषा में वर्णित कृष्ण-चरित्र से भिन्न, मर्यादित और शालीन है, भले ही वैसा रोचक एवं प्रभावशाली वर्णन न रहा हो।०५ इन कवियों ने श्री कृष्ण चरित्र के वर्णन में श्रृंगार को इतनी महत्ता प्रदान नहीं की है, जितनी रीतिकाल के अन्य कृष्ण-भक्त कवियों ने। इनके कृष्ण मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की भाँति मर्यादित चरित्र वाले हैं। इस प्रकार अवधी भाषा के कृष्ण भक्त कवियों का काव्य अपने-आप में विशिष्ट रहा है। आधुनिक काल में कृष्ण-काव्य : भक्ति काल से चली आ रही कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा ने न केवल रीतिकाल या श्रृंगार काल को ही प्रभावित किया वरन् आधुनिक काल में भी कृष्ण-भक्ति का अपने काव्य में वर्णन करने वाले अनेक कृष्ण-भक्त कवि हो गये हैं। कृष्ण-चरित्र का एक ऐसा अद्भुत आकर्षण रहा है कि प्रत्येक काल के कवियों ने इनके चरित्र का चित्रण किया है। अतः हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल में भी कृष्ण-विषयक अनेक कृतियों का निर्माण हुआ है।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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