SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-साहित्य परम्परा में श्री कृष्ण : भारतीय वाङ्मय में जैन साहित्य को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। जैन-साहित्य अपेक्षित रूप से प्रकाश में नहीं आया है। जैन ग्रन्थों के "असूर्यम्पश्य" रखने की प्रवृत्ति ने भी ज्ञान की अपार राशि को जिज्ञासुओं से बहुत दिनों तक दूर रखा है। इसके अलावा भेदभाव पूर्ण साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से भी इस चिन्तन से सामान्य जन वंचित रहा है। जैन साहित्य के महार्घरत्नों से भारती का भण्डार भरा पड़ा है, परन्तु अनायास प्राप्त उनके आलोक का लाभ भी हम नहीं उठा पाते, उन्हें एकान्त रूप से प्राप्त करने के प्रयत्न की बात तो दूर रही। आश्चर्को तब होता है कि जब साहित्य के परिचायक इतिहास ग्रन्थों में भी इन ग्रन्थ-रत्नों का स्पष्ट उल्लेख भी नहीं होता जबकि साहित्यिक दृष्टि से ये ग्रन्थ किसी भाषा के कण्ठहार बन सकते हैं।०९। जैन साहित्य में श्री कृष्ण चरित्र वर्णन की एक विशाल परम्परा रही है। “पहले विद्वान यह मानते थे कि जैनियों ने वैष्णवपुराणों से ही कृष्ण चरित्र लिया है परन्तु इस विशाल साहित्य-परम्परा को देखकर यह बात निर्मूल सिद्ध होती है।११० जैन साहित्य के आगम काल से कृष्ण चरित्र का निरूपण होता रहा है। इन ग्रन्थों में कृष्ण चरित्र के विविध प्रसंगों का संदर्भानुसार उल्लेख हुआ है। आगम साहित्य के उपरान्त आगमेतर साहित्य में भी इसी परम्परानुसार प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी संस्कृत आदि अनेक भाषाओं में श्री कृष्ण विषयक कृतियों की रचना हुई है। आगम-साहित्य में श्री कृष्ण : आगम साहित्य प्राकृत भाषा में निबद्ध है। यह साहित्य मूलतः सिद्धान्त-निरूपण से सम्बन्धित है परन्तु सिद्धान्त-निरूपण में व्यक्ति चरित्रों का भी चित्रण हुआ है, इसलिए कृष्ण-चरित्र के विविध प्रसंग भी यत्र-तत्र इन कृतियों में वर्णित हैं। कृष्ण-चरित्र सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय कृतियों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार से है(१) समवायांग सूत्र : इस ग्रन्थ में सिद्धान्त-निरूपण के उपरान्त शलाकापुरुषों का नाम तथा उनकी विशेषताओं का वर्णन मिलता है। सूत्र 206 में बलदेव एवं श्री कृष्ण की विशेषताओं, उनका व्यक्तित्व, लक्षण, अस्त्र-शस्त्र तथा ध्वजा आदि का वर्णन दिया गया है। (2) ज्ञाताधर्म-कथा : इस कृति के दो श्रुतस्कन्ध है। प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलहवें अध्ययन में द्रोपदी का चरित्र वर्णित है। इसी प्रसंग में कृष्ण वासुदेव का श्रेष्ठ राजपुरुष के रूप में निरूपण हुआ है, जो अपने समय के राज-समाज के पूजनीय, प्रभावशाली एवं महान् बलशाली हैं। इसी सूत्र में अर्द्ध चक्रवर्ती शलाकापुरुष वासुदेव राजा के रूप में श्री कृष्ण का विशद वर्णन हुआ है।११
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy