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________________ इनका रचनाकाल 1663 ई० से 1693 ई० तक माना जाता है। ये कृष्ण भक्ति में लीन एक प्रेमयोगी थे। इनका रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ "अनन्य-निश्चात्मक" कुण्डलियाँ तथा छप्पय छंद में लिखा है। इसमें एक ओर तो वैराग्य भाव छलकता है तो दूसरी ओर अनन्य प्रेम का भाव। इनका हृदय प्रेमरस पूर्ण था। इन्होंने स्वयं ने कहा है कि "भागवत रसिक रसिक की बातें, रसिक बिना कोऊ समुझि सके ना" इनके अनेक पद "भगवत रसिक की वाणी" में संग्रहित हैं। भाषा सरला एवं चलती है। काव्यगुणों की दृष्टि से इनके पद साधारण कोटि के हैं। अन्य कवि : रीतिकालीन कृष्ण-भक्ति काव्य परम्परा में वृन्दावनदेव का नाम भी उल्लेखनीय है, इनकी रचना "कृष्णामृतगंगा" प्रसिद्ध रही है। "पीताम्बरदास" जो कि निम्बार्क सम्प्रदाय से जुड़े कृष्ण भक्त कवि थे। इनको केलिमाल टीका, समयप्रबन्ध, सिद्धान्त और रस की साखी, सिद्धान्त और रसिक पद आदि रचनाएँ रही हैं। रीतिकालीन कृष्ण भक्त कवियों में भक्तवर नागरीदास की बहिन कुंवरिबाई का भी विशेष स्थान है। मीराँ की भाँति ये भी प्रसिद्ध भक्त कवयित्री हुई हैं। नेहनिधि, वृन्दावन गोपी महात्म्य, संकेत युगल, रसपुंज, प्रेम सम्पुट, सार संग्रह, रंगझर, भावना प्रकाश, रास-रहस्य आदि इनकी दस कृतियाँ हैं। इनमें राधाकृष्ण के रसमाधुर्य का निरूपण है। ___बख्शी हंसराज श्रीवास्तव प्रेमसखी भी इस युग के उल्लेख योग्य कृष्ण-भक्त कवि हुए हैं। ये सखी सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे। स्नेह सागर, विरह विलास, कृष्ण जू की पाँति, बारहमासा, विनय पत्रिका, पुरिहारिन लीला तथा फाग तरंगिनी आदि इनकी कृतियाँ हैं। इनमें राधा कृष्ण की लीलाओं का भावपूर्ण निरूपण है। लोचन ललित प्रीति रसपागे, पुतरिन स्याम निहारे। मानौ कमल दलन पर बैठे, उडत न अलि मतवारे॥ अठारहवीं सदी के अंतिम चरण में विद्यमान "सहचरि-सरन" सखि सम्प्रदाय के भक्त कवि थे। इन्होंने श्री कृष्ण-राधा की युगल छवि का मनोहारी चित्रण किया है। इनकी रचनाएँ ललित प्रकाश तथा सरस मन्जावली प्रसिद्ध रही हैं। चैतन्य सम्प्रदाय के भक्त कवि "मंजरीदास" भी इस काल में हुए। इनके समकालीन कृष्णदास ने भी कृष्ण चरित्र का गान किया है। इस काल के कृष्ण भक्त कवयित्रियों में रत्नकुंवरी भी अविस्मरणीय है। इनका जीवन योगिनी की भाँति व्यतित हुआ था। इनका "प्रेमरत्न" नामक प्रबन्ध काव्य प्रसिद्ध है। इसके अलावा दामोदर चौधरी, भोलानाथ भण्डारी आदि का नाम भी भक्त कवियों में उल्लेखनीय है।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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