________________ के कवित्त आदि प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इन पुस्तकों में भावों की सुन्दर व्यंजना मिलती है। ये सब गेय पदों में कवित्त, सवैया, रोला आदि छन्दों में रचित है। इनकी भाषा सरल है। ये सखी सम्प्रदाय से सम्बन्धित कृष्ण भक्त कवि थे, जिन्होंने कृष्ण भक्ति की मुक्तक रचनाएँ कर अपने को अमर कर दिया। (3) अलबेली अली : ये विष्णु स्वामी सम्प्रदाय के महात्मा श्री वंशीअली के प्रसिद्ध शिष्य थे। ये राधा के उपासक थे। इनका जीवन-वृत्त नहीं मिलता है। इनका कविता काल विक्रम की १८वीं शताब्दी का अंतिम भाग माना जाता है। ये ब्रज भाषा एवं संस्कृत के पंडित थे। इनकी कविता परिष्कृत एवं प्रांजल रूप में मिलती है तथा पद बड़े ही उत्कृष्ट एवं सरस हैं। इनकी आनुप्रासिक छटा सरस शब्दावली से मनोहारिणी बन पड़ी है। श्री स्तोत्र तथा समय-प्रबन्ध-पदावली इनकी रचनाएँ हैं। इनमें कुंज-बिहारी रासलीला का सुमधुर वर्णन हुआ है। एक पद देखिए सरद रैन सुख देन मैनमय जमुनातीर सुहायो। सकल कला पूरन ससि सीतल महिमंडल पर आयो॥ अतिशय सरस सुगंध मंदगति बहत पवन रुचिकारी। नव-नव रूप नवल नव जोवन बने नवल प्रिय प्यारी॥ (3) चाचा हितवृन्दावनदास : ये पुष्कर क्षेत्र के रहने वाले गौड ब्राह्मण थे, जिनका जन्म ईसवी सन् 1608 में हुआ था। ये राधावल्लभीय सम्प्रदाय के भक्त थे। फलस्वरूप इन्होंने ब्रजवासी कृष्ण के * साथ राधिका के प्रति भी दास्यभाव रखा है। "जैसे सूरदास के सवालाख पद बनाने की जनश्रुति है, उसी प्रकार इनके भी एक लाख पद और छन्द बनाने की बात प्रसिद्ध है। इसमें से 20,000 के लगभग तो पद मिले हैं।"१०४ ये राधा के भक्त होने के कारण इन्होंने राधा को स्वतंत्र विहार करने वाली पराशक्ति के रूप में स्वीकार किया है। राधा परमैश्वर्यवती और शोभा-शालिनी है तथा अष्ट सिद्धियाँ व नव निधियाँ भी उनकी टहल करती हैं। ब्रजचन्द्र का महत्त्व भी ब्रजेश्वरी राधा की कृपा से ही है। इनकी रचनाओं में लाड़सागर, ब्रजप्रेमानन्द सागर, जुगलस्नेहपत्रिका, कृपा अभिलाषा बेली, भ्रमरगीत आदि प्रसिद्ध हैं। इनका भाषा के ऊपर अद्भुत अधिकार था। इनके काव्य में प्रौढ़ता दृष्टिगोचर होती है जिसमें सजीवता तथा स्वाभाविकता और मधुरता है। (4) भगवत रसिक : ये टट्टी सम्प्रदाय के महात्मा स्वामी ललितमोहनदास के शिष्य थे। ये निर्लिप्त भाव से भगवद् भजन में लगे रहते थे। इनका जन्म सं० 1695 के लगभग हुआ था -