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________________ भ्रकुटि बंक नैन खंजन से, कंजन गंजन वारे। गद भंजन खग मीन सदा, जे मनरंजन अनियारे॥ मुक्तक शैली में रचित कृष्ण काव्य : रीतिकाल के अधिकांश कवियों ने मुक्तक शैली में अपने काव्य का निरूपण किया है। प्रबन्ध काव्य की अपेक्षा इन कवियों द्वारा रचित मुक्तक काव्य भाव एवं अभिव्यंजना की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस युग में भक्ति भाव से प्रेरित कृष्ण-काव्य की प्रमुख रचनाएँ हुई हैं। मुक्तक पद्धति को अपनाने वाले कृष्ण-भक्त-कवियों में रूपरसिक देव, नागरीदास, अलबेली, चाचा वृन्दावनदास एवं भगवत रसिक उल्लेखनीय हैं। इनके अलावा भी अनेक कृष्ण-भक्त-कवियों ने इस काव्य धारा का विकास किया है। .... (1) रूपरसिकदेव : ये निम्बार्क सम्प्रदायी भक्त कवि हरिव्यास के शिष्य थे। इन्होंने हरिव्यास के गोलोकधाम गमन के बाद उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। अतः इन्हें गुरु-दर्शन नहीं हुए। इनके जीवन-वृत्त के सम्बन्ध में निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। इनका रचनाकाल अठाहरवीं सदी के पूर्वार्द्ध में था। इनकी चार कृतियाँ उपलब्ध हैं(१) लीला विंशति (निम्बार्क सम्प्रदाय के रसोपासना सिद्धान्त का परिचायक रूप) (2) हरिव्यास यशामृत (गुरु का स्तुतिज्ञान) . ' (3) नित्य-विहारी पदावली (राधा-कृष्ण की रस-लीलाओं का वर्णन) . (4) वृद्धोत्सव मणिमाल (वर्ष भर के उत्सवों का वर्णन व राधा-कृष्ण का भक्तिभाव) इस प्रकार रूपरसिक देव एक कृष्ण कवि थे, जिन्होंने ब्रजभाषा में अपनी कृतियों की रचनाकर श्री कृष्ण के अनन्य प्रेम को निरूपित किया। (2) नागरीदास : यद्यपि इस नाम के कई भक्त कवि हो गये हैं, परन्तु इन सब में कृष्णगढ़ के राजा श्री सावन्तसिंह ही नागरीदास के रूप में अधिक प्रिय हैं। इनका जन्म सन् 1599 में हुआ था। गृह-कलह के कारण गृह छोड़कर ये राधा के भक्त बन गये तथा वृन्दावन में ही रहने लगे। इन्होंने कलह के बारे में लिखा है कि जहाँ कलह तहाँ सुख नहीं, कलह दुखन की सूल। सब कलह इक राज में, राज कलह को मूल॥ इनका कविता काल ई०सं० 1623 से 1662 माना जाता है। आचार्य शुक्ल के अनुसार इनकी लिखी छोटी-मोटी 63 पुस्तकें संग्रहित हैं।०३ इसमें जुगलरस माधुरी, प्रिया जन्मोत्सव कविता, फाग विलास, रासरसलता, ईशचयन, कृष्णजन्मोत्सव, गोवर्धनधारण - D
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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