________________ प्रबन्धात्मक कृष्ण काव्य : यहाँ हम रीतिकाल के ऐसे कवियों का उल्लेख करेंगे जिन्होंने सही रूप से श्री कृष्ण के लीलामृत को प्रबन्ध-काव्य-कृतियों में निरूपित किया है। इस काल के काव्य के रचयिताओं में गुमान मिश्र, ब्रजवासीदास, मंचित आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। (1) गुमान मिश्र : ये महोबे के रहने वाले एवं गोपाल-मणि के पुत्र थे। ये वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी तथा वृन्दावन निवासी थे। इन्होंने हर्ष कृत "नैषध चरित्र" का पद्यानुवाद एवं श्री कृष्णचन्द्रिका तथा छंदावरी नामक ग्रन्थ लिखे। श्री कृष्ण चन्द्रिका, जिसका निर्माणकाल सं० 1838 है, एक प्रबन्ध काव्य है। इसमें इन्होंने श्री कृष्ण के चरित्र का सुमधुर वर्णन किया है। ये उत्तम कोटि के कवि थे। इनका एक पद द्रष्टव्य है- . दुर्जन की हानि, विरधा पनोई करै पीर, गुनलोप होत एक मोतिन के हारकी। टूठे मानिमालै निरगुन गायताल लिखै, पोथिन ही अंक मन कलह विचार ही॥ (2) ब्रजवासीदास :- ये वृन्दावन निवासी वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी थे। इन्होंने सूरसागर के कथानक के आधार पर दोहों, सोरठों तथा चौपाइयों में "ब्रजबिलास" नामक प्रबन्ध काव्य लिखा। यह रचना ईसवी सन् 1660 की मानी जाती है। यह ग्रन्थ साधारण कोटि का है। इन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि- "यामे कछुक बुद्धि नहीं मेरी, उक्ति युक्ति सब सूर हि केरी" ___यह ब्रज भाषा में लिखा काव्य ग्रन्थ है। इसमें श्री कृष्ण का जन्म से लेकर मथुरागमन तक भिन्न-भिन्न लीलाओं का वर्णन किया गया है। भाषा सीधी-सादी सुव्यवस्थित तथा चलती हुई है। (3) मंचित : ये मऊ (बुंदेलखंड) के रहने वाले ब्राह्मण थे। इन्होंने कृष्ण-चरित्र सम्बन्धी दो . पुस्तकें लिखी हैं। "सुरभी दान-लीला" तथा "कृष्णायन"। सुरभी दान-लीला में बाल लीला, यमलार्जुनलीला, दानलीला का विस्तृत वर्णन है। कृष्णायन तुलसीदास के अनुकरण पर दोहों, चौपाइयों में लिखा प्रबन्ध काव्य है। इसमें कवि ने कृष्ण-चरित्र का वर्णन किया है। इसकी भाषा ब्रज है जो अनुप्रासयुक्त एवं सारगर्भित है। .. इन्होंने अपनी कृति सुरभी-दानलीला में श्री कृष्ण के नख-शिख सौन्दर्य का वर्णन किया है, जो द्रष्टव्य है