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________________ उत्कृष्ट काव्यात्मक रूप से की है। काव्यत्व की दृष्टि से इस सम्प्रदाय में इनको श्रेष्ठ कवि माना जाता है।९५ (8) चाचा वृन्दावन दास : . राधावल्लभ सम्प्रदाय में ग्रन्थों की दृष्टि से चाचा वृन्दावन दास का महत्त्वपूर्ण स्थान स्वीकार किया जाता है। डॉ. विजयेन्द्र स्नातक के अनुसार इनके लिखे 158 छोटे-बड़े ग्रन्थ मिलते हैं। इनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ "लाड़सागर" है जिसमें राधा-कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन किया गया है। इनका कवित्व साधारण कोटि का है। इन कवियों के अतिरिक्त इस सम्प्रदाय के सैकड़ों कृष्ण-भक्त कवि हुए हैं परन्तु साहित्यिक दृष्टि से उनका कोई विशेष महत्त्व नहीं है। अतः उनको उल्लेखनीय नहीं जान जाता है। सखी सम्प्रदाय के कृष्ण-भक्त कवि : मध्यकालीन कृष्ण-भक्त सम्प्रदायों में सखी सम्प्रदाय का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है। सम्प्रदाय का संक्षिप्त उल्लेख पिछले पृष्ठों में किया गया है। इस सम्प्रदाय को टट्टी सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। इस सम्प्रदाय में कई महत्त्वपूर्ण कृष्ण-भक्त कवि हुए हैं, जिनका उल्लेख करना न्याय संगत होगा। (1) स्वामी हरिदास : इन्हें इस सम्प्रदाय का संस्थापक माना जाता है। इनका जन्म ई०स० 1468 में वृन्दावन के निकट राजपुर नामक ग्राम में हुआ था। ये महान् संगीतज्ञ थे। उस समय के प्रसिद्ध गायक "बैजुबावरा" के ये गुरु थे। तानसेन जैसे महान् संगीतज्ञ भी इनका संगीत सुनने आया करते थे। ये बाँके-बिहारीजी के उपासक थे तथा रसमार्ग के राही थे। इनकी रचनाओं में सिद्धान्त के पद, केलिमाल हरिदास के पद, हरिदास की बानी, हरिदासजी के ग्रन्थ आदि प्रसिद्ध हैं। इन्होंने थोड़ा लिखकर भी अमर ख्याति की प्राप्ति की है। आपने श्री कृष्ण की मृदु लीलाओं का वर्णन किया है। इनकी कल्पना स्वाभाविक एवं सहज है। भाषा बोलचाल के निकट तथा भावानुकूल है। (2) जगन्नाथ गोस्वामी : ये स्वामी हरिदास के छोटे भाई थे। स्वामी हरिदास के वृन्दावन-निवास के कुछ समय पश्चात् जगन्नाथ गोस्वामी भी वृन्दावन आये। स्वामीजी ने इन्हें "श्रीबाँकेबिहारी" की पूजा-अर्चना का काम सौंपा। इनका कृष्ण भक्ति विषयक "अनन्य सेवाविधि" नामक ग्रन्थ है। इनके स्फुट पद अनेक कीर्तन संग्रहों में सम्मिलित हैं। -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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