________________ को सर्वप्रथम "दीनदयाल गुप्त" ने दूर किया। इनका "द्वादश-यश" ग्रन्थ प्रसिद्ध है। जिसमें भक्ति के महत्त्व को प्रतिष्ठित किया गया है। इनके कुछ फुटकर पद हैं। ब्रज भाषा का मधुमाधुर्य ही उनकी रचना का प्राण है। काव्य-कला की दृष्टि से इनका महत्त्व नहीं है। ध्रुवदास : हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में इनका जीवनवृत्त प्रामाणिक रूप से नहीं मिलता है। जनश्रुतियों एवं गोस्वामी जतनलाल तथा चाचा वृन्दावनदास द्वारा उल्लेखित सामग्री के आधार पर जीवनदृत्त इस प्रकार से है। इनका जन्म ई०सं० 1563 में देववन्द (सहारनपुर) के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। ये शैशव से ही वैष्णव भक्ति से ओत-प्रोत परिवार में बड़े हुए। ई०सं० 1643 के आसपास इनका देहावसान हो गया। इनकी कृतियों में इनका प्रमुख लक्ष्य राधावल्लभ सम्प्रदाय का तात्त्विक विवेचन प्रस्तुत करना रहा है। व्याख्यापरक दृष्टि से तत्त्वबोध का इतना व्यापक अद्यावधि से विवेचन इस सम्प्रदाय के किसी कवि ने नहीं किया। वियोगी हरि ने ब्रजमाधुरी में इनके चालीस ग्रन्थों की सूची दी है परन्तु मिश्र बन्धु विनोद में इनके बयालीस ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है। श्री कृष्ण के भंगार वर्णन में इन्होंने वियोग का तिरस्कार कर संयोग को ही स्वीकार किया है। ये संभोग को ही प्रेम का पर्याय मानते हैं। इन्होंने कवित्त, सवैया, कुण्डलियाँ आदि विविध छन्दों का प्रयोग कर गेय-पदों की रचना की है। (6) नेही नागरीदास : नागरीदास के नाम से हिन्दी साहित्य के कई भक्त कवि विख्यात हैं परन्तु राधावल्लभ सम्प्रदाय के नागरीदास के "नेही" उपाधि होने के कारण वे सबसे अलग हो जाते हैं। ये राधा के अनन्य भक्त कवि थे। भगवत मुक्ति कृत "अनन्य रसिकमाल" में इन को पंवार क्षत्रिय कुलोद्भव तथा बैरैछा गाँव (बुंदेलखंड) का निवासी बताया गया है। बचपन से ही इनकी रुचि भक्ति में थी। चतुर्भुजदास के मिलने पर इन्होंने घर-बार छोड़ वृन्दावन को प्रस्थान किया तथा वहाँ "गोस्वामी वनचन्द्र" से दीक्षा ली। . राधाष्टक सिद्धान्त, दोहावली, पदावली तथा रसपदावली-ये इनके चार ग्रन्थ माने जाते हैं। इन रचनाओं में भक्ति तथा श्रृंगार का ही प्राधान्य रहा है। इनका काव्य-गुण साधारण कोटि का है। (7) कल्याण पुजारी :... इनके जीवनवृत्त के बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है परन्तु इनके 200 मुक्तक मिलते हैं। इन्होंने अपने मुक्तकों में प्रणय भक्ति आदि भावनाओं की व्यंजना D -