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________________ .. . विपिनघन कुंजरति केलि भुज मेलिरुचि, स्याम-स्यामा मिले सरद की जामिनी। हृदय अति फूल रसमूल पिय नागरी, कर निकट मत मन विविध गुन रागिनी॥ सामना। दलित दल मदन बल कोकरस कामिनि। हित हरिवंश सुनि लाल लावन्य भिंदे प्रिया अति सूर सुख सुरत संग्रामिनी॥१२ (2) दामोदरदास : राधावल्लभ सम्प्रदाय के भक्त कवियों में दामोदरदास की गणना की जाती है। इनके जीवन वृत्त के सम्बन्ध में विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं होती है। इनका ग्रन्थ "सेवकवाणिका" धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। यह “हितचौरासी" की पूरक कृति मानी जाती है। कहा गया है कि "चौरासी अरु सेवक वाणी, इक संग लिखित पढ़त सुखदानी।" यह ग्रन्थ उनकी सहज अभिव्यक्ति के आधार पर सम्प्रदाय की मूल भावना से ओत-प्रोत रहा है। (3) हरिराय व्यास : - ये औरछा के रहने वाले सनाढ्य ब्राह्मण थे। औरछा नरेश "मधुकरशाह" के ये राजगुरु थे। शैशव से ही इन्होंने संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। पहले ये आसक्त भाव के सद्गृहस्थ थे, परन्तु बाद में विरक्त होकर साधु बन गये। इनके ग्रन्थ संस्कृत और हिन्दी दोनों भाषाओं में मिलते हैं। हिन्दी में "व्यासवाणी" तथा "रागमाला" इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ रही हैं। इनके काव्य में भक्ति के निरूपण के उपरान्त श्रृंगार रस का सरस चित्रण मिलता है। "व्यासवाणी" में माधुर्य-भक्ति, राधाकृष्ण की भी निकुंज लीलाओं का बड़ा ही मनोरम निरूपण मिलता है कुंज केली मीठी है विरह भक्ति सीढ़ी ज्यों आग। व्यास विलास रास रस जीवत मिटे हृदय के दाग॥ इनके पदों में उच्च कोटि की सरलता प्रांजलता मिलती है। उन्होंने शृंगार एवं शान्त रस को अपने काव्य का मुख्य हेतु बनाया है। इनकी भाषा भी भावानुकूल है।३ चतुर्भुजदास : इनका जीवन वृत्त भ्रामक रहा है। कई विद्वानों ने अष्टछाप के चतुर्भुजदास एवं राधावल्लभीय चतुर्भुजदास को एक मान लिया है। मिश्र-बन्धुओं व "शुक्लं" के इस भ्रम
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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