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________________ हुआ था। पिता के आदेशानुसार दस वर्ष की अवस्था में इन्होंने पुष्टिमार्ग से दीक्षा . ग्रहण की थी। पिता के साथ कीर्तन सेवा करने के कारण अल्प आयु में ये उत्तम रीति के काव्य रचना करने लगे थे। ये आशु कवि थे। वे जीवन पर्यन्त अनन्य भाव से श्रीनाथजी की कीर्तन सेवा करते रहे। इसी गुण के कारण विठ्ठलनाथ ने इन्हें कृपापात्र बनाकर अष्टछाप में स्थान दिया। ईसवी सन् 1585 में गोस्वामी विठ्ठलनाथ के देहावसान के हृदय-विदारक आघात से इन्होंने भी अपने देह का त्याग कर गोलोक में प्रवेश किया। इनकी भी कोई स्वतंत्र रचना नहीं है। स्फुट पदों के तीन संग्रह उपलब्ध होते हैं-(१) चतुर्भुज कीर्तन संग्रह (2) कीर्तनावली (3) दानलीला। इनके पदों में शृंगार रस का विशेष निरूपण हुआ है। कृष्ण जन्म से लेकर गोपी विरह, ब्रजलीला तक का गान इनका काव्य-विषय रहा है। बाललीला वर्णन में इनका यह मनोवैज्ञानिकता पर आधारित पद देखिए चटिया तेरी बडी किंधो मेरी। अहो सुबल बैढि भैया हो, हम तुम मापे एक बेरी। ले तिनका मापत उनकी कंछु अपनी करत बड़ेरी। लेकर कमल दिखावत ग्वालन ऐसी काहु न केरी॥ मौं को मैया दूध पिबावत ताते होत घनेरी। चतुर्भुज प्रभु गिरिधर इहि आनन्द नाचत दे दे फेरी॥१ राधावल्लभ सम्प्रदाय के कृष्ण भक्त कवि : अष्टछाप के कृष्ण भक्त कवियों के पश्चात् राधावल्लभ सम्प्रदाय के कृष्ण भक्त कवियों का भी हिन्दी साहित्य में विशेष महत्त्व है। यह सम्प्रदाय भी कृष्ण भक्ति का एक प्रमुख सम्प्रदाय माना जाता है। ब्रह्मसम्प्रदाय या "माध्वसम्प्रदाय" के अन्तर्गत इसमें प्रेम को ही भक्ति का मूलाधार माना गया है। (1) गोस्वामी हितहरिवंश :__आचार्य शुक्ल के अनुसार इनका जन्म संवत् 1559 में मथुरा के पास "बाद" गाँव में हुआ था। ये गौड़ ब्राह्मण थे। ये कृष्ण के अनन्य भक्त एवं गृहस्थ थे। स्वप्न में एक बार राधा की प्रेरणा से इन्होंने एक नवीन सम्प्रदाय (राधावल्लभ सम्प्रदाय) की स्थापना की थी। ये वृन्दावन में राधा-कृष्ण की युगलमूर्ति की स्थापना कर उनके लीलागान में लगे रहे। ये संस्कृत एवं हिन्दी के अच्छे कवि थे। राधासुधानिधि, यमुनाष्टक (संस्कृत) तथा हित-चौरासी एवं स्फुटवाणी हिन्दी की रचनाएँ हैं। इन्होंने अपने पदों में परिष्कृत ब्रजभाषा को अपनाया है, जो सरस एवं हृदय-ग्राहिणी रही है। इनकी भाषा में संगीतात्मकता, प्रांजलता, नाद-सौन्दर्य, चित्रात्मकता एवं समीचीन वर्ण-विन्यास के उल्लेखनीय गुण उपलब्ध होते हैं। इनका एक पद द्रष्टव्य है - - D
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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