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________________ (6) गोविन्द स्वामी : संगीतकला के मर्मज्ञ के रूप में गोविन्द स्वामी का विशेष महत्त्व है। अकबर के दरबारी तानसेन भी इनकी गायनकला पर मुग्ध थे। इनका जन्म भरतपुर के आंतरी नामक ग्राम में ई०सं० 1505 में हुआ था। एक पुत्री होने के बाद इन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया। अतः गृहस्थाश्रम का त्याग कर आंतरी ग्राम छोड़कर ब्रज में चले गये थे। वहाँ गोस्वामी विठ्ठलनाथ से शिष्यत्व स्वीकार कर इन्होंने पुष्टिमार्ग के अनुरूप ही श्री कृष्ण की बाललीला एवं प्रेम लीला का निरूपण किया। इनके रचित कोई स्वतंत्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता परन्तु गोविन्द स्वामी के पद नामक ग्रन्थ में इनके स्फुट पदों का संग्रह किया गया है। इनकी काव्य-रचना विशेष उल्लेखनीय नहीं है परन्तु इसमें संगीत, लय, स्वर आदि का विशेष ज्ञान मिलता है। ये रसनायक रसस्वरूप भगवान् श्री कृष्ण के परंम संकीर्तक थे। वे गोपीवल्लभ रसरूप कृष्ण को ही परब्रह्म मानते थे। (7) छीत स्वामी : ___ इनका जन्म मथुरा में ईसवी सन् 1515 में एक सुसम्पन्न चतुर्वेदी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। प्रारम्भ में वे बड़े उद्दण्ड और अक्खड़ स्वभाव के थे। एक बार विठ्ठलनाथ की चमत्कारिता को देख उन्होंने उनसे दीक्षा ग्रहण की, बाद में वे गोवर्धन पर्वत के निकट "पूँछरी" नानक स्थान में रहने लगे। इनकी भक्ति एवं तन्मयता के आधार पर इनको अष्टछाप में सम्मिलित किया गया। उन्हें ब्रजपति एवं ब्रजमण्डल से अगाध प्रेम था। ये कृष्ण के अनन्य भक्त थे। "अनन्त नामावली" में इनके कृष्ण के प्रति पावन प्रेम होने के कारण इनके नाम की महिमा बताई गई है रामानन्द अंगद सोमू, हरिव्यास और छीत। एक एक के नाम ते, सब जग होय पुनीत॥ "कहा जाता है कि विठ्ठलनाथ के अवसान के समय आघात न सहन करने के कारण ईसवी सन् 1585 में इन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया था।८९ इनकी भी कोई स्वतंत्र रचना नहीं है परन्तु इनके 200 स्फूट पद प्राप्त हो सकत हैं, जो विविध कीर्तन संग्रहों में संग्रहित है। इस पदों में इन्होंने श्री कृष्ण की शृंगार लीलाओं के अतिरिक्त ब्रज की भूमि और रज की प्रशंसा की है। काव्य-कला की दृष्टि से इनकी कविता साधारण कोटि की है। चतुर्भुजदास : ये अष्टछाप के वयोवृद्ध कवि कुम्भनदास के सातवें पुत्र थे। इनके जीवन वृत्त के बारे में "दो सौ वैष्णव की वार्ता" तथा "अष्टसखा की वार्ता" में वर्णन मिलता है। तदनुसार इनका जन्म गोवर्धन के पास जमुनावती गाँव में ईसवी सन् 1556 में
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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