________________ अपना शिष्य बनाया था। इनकी भक्ति, कार्यक्षमता एवं कुशाग्र बुद्धि के आधार पर इनको श्रीनाथजी मन्दिर का अधिकारी बनाया गया था। वे आजीवन अविवाहित रहे। एक किंवदन्ति के अनुसार ई०सं० 1502 में एक कुआँ बनवाते समय इनकी मृत्यु इनके निम्न ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं (1) जुगलमाल चरित्र (2) भ्रमरगीत (3) प्रेमगीत निरूपण (4) भक्तमाल टीका (5) वैष्णववंदन (6) वानि प्रेमरस राजि (7) हिंडोला लीला (8) दान लीला। इनका कवित्व साधारण कोटि का है परन्तु ये संगीत के मर्मज्ञ एवं सरस गायक थे। इन्होंने ब्रज भाषा में अपने पदों की रचना की है। राधा-कृष्ण के युगल स्वरूप का निम्न पद उदाहरणार्थ द्रष्टव्य है रसिक नी राधा रस भीनी। मोहक रसिक गिरिधरपिय, अपने कण्ठु मनि कीनी॥ रसमय अंग-अंग रस-रसमय रसिक रसिकता चिन्हीं। उभयस्वरूप का रति न्यौछावरि, "कृष्णदास" को दीनी॥८ (5) नन्ददास : - अष्टछाप कवियों में सूरदास के बाद नन्ददास का स्थान प्रमुख है। ये गोस्वामी विठ्ठलनाथ के शिष्य एवं आयु में सबसे छोटे थे। इनका जन्म सन् 1533 में राजपुरा में हुआ। ये सनाढ्य ब्राह्मण थे। ये तुलसीदास के चचेरे भाई थे। इन्होंने बचपन से ही तुलसी के साथ संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। प्रारम्भ में रामभक्त, परन्तु बाद में विठ्ठलनाथ से पुष्टिमार्ग में दीक्षित हुए। अष्टछाप के अन्य भक्त कवियों की भाँति इन्होंने कीर्तन के स्फुट पदों की रचना की है। साथ में इनके कई ग्रन्थ भी प्रसिद्ध हैं। - ये उच्चकोटि के भावुक कवि थे। इनकी रचनाओं में सरसता व मधुरता की अभिव्यक्ति है। "रास पंचाध्यायी" काव्य सौन्दर्य की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ रचना है। इसमें भक्तिभाव की न्यूनता, परन्तु शृंगार का प्राधान्य है। इनका भ्रमरगीत उत्तर ग्रन्थ है। इसमें उद्धव गोपी संवाद के माध्यम से ज्ञान पर प्रेम की एवं निर्गुण पर सगुण की विजय दिखलाई है। इसमें गोपियों की हृदयस्पर्शी विरह वेदना का अंकन किया गया है। ... नन्ददास का स्वर भक्ति का रहते हुए भी उद्दाम श्रृंगार भाव से ओतप्रोत रहा - है। ये एक विद्वान, काव्यशास्त्र के अध्येता एवं कुशल कवि थे। इनकी भाषा सुसंस्कृत प्रौढ़ता को लिए हुए हैं। उसके बारे में कहा गया है कि-"ओर कवि गढ़िया, .नन्ददास जड़िया"। - -