________________ (3) विट्ठल विपुल : एक मान्यतानुसार ये श्रीस्वामीजी के छोटे भाई थे परन्तु निजमत-सिद्धान्त में इन्हें हरिदास के चचेरे भाई स्वीकारा है। भक्तमाल के टीकाकार प्रियादास के अनुसार इनकी गुरु-भक्ति अपूर्व थी। हरिदास के गोलोकवास से व्यथित होकर इन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध दी थी परन्तु रसिकों द्वारा रास-लीला देखने-बुलाने पर रासलीला में गुरु को न देखकर इन्होंने अपने प्राण त्याग दिये। इनके 40 पद ही प्राप्त हैं लेकिन नाभादास ने इनको रसराज की उपाधि प्रदान की है। इनकी भाषा सजीव है एवं अलंकार स्वतः उद्भूत है। (4) बिहारिनदास : ये सखी सम्प्रदाय के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इन्होंने अपने सम्प्रदाय के सिद्धान्तों की व्याख्या की है। इन्हें इस सम्प्रदाय का गुरु भी माना जाता है। इनके मूल नाम की जानकारी नहीं है परन्तु बिहारिनदास नाम स्वामी गोस्वामी ने दिया था। ये राधाकृष्ण की उपासना में डूबे रहते थे एवं सम्पूर्ण रूप से अपरिग्रही बनकर जीवन-यापन करते थे। ये विपुल विठ्ठल के शिष्य थे। इनकी "बिहारिनदास की जीवनी" नामक कृति प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ का एक भाग साधारण कोटि का है तथा दूसरा भाग रस-सिद्धान्त है। साधारण सिद्धान्त में भक्त की महत्ता तथा रस-सिद्धान्त में सखी भाव की उपासना के तत्त्वों का निरूपण किया है। इनकी भाषा तत्सम प्रधान परन्तु विन्यास की दृष्टि से निराली है। (5) नागरीदास :- 'सखी सम्प्रदाय के एक भक्त के रूप में नागरीदास का नाम उल्लेखनीय है। ये * बिहारिनदास के प्रमुख शिष्य थे। निजमत सिद्धान्त के अनुसार ये कामरूप के मंत्री कमलापति के पुत्र थे लेकिन यह पूर्ण विश्वसनीय नहीं है। "ध्रुवदास' ने इनकी महत्ता में निम्न - दोहा कहा था- . कहो-कहो मृदुल सुभाष, अति सरस नागरिदास। .. . बिहारि विहारिन को सुयश, गायो हरखि हुलास॥ इनकी 20 साखियाँ, 24 चौबीले, 39 कवित्त-सवैये तथा 60 पद प्राप्त हैं। इनकी शैली '. पर हरिदास के पदों की स्पष्ट छाप है। (6) सरसीदास :.. ये नागरीदास के छोटे भाई थे। बिहारिनदासजी की गद्दी के अधिकारी ये ही बने थे। इनकी रचना 66 छन्दों में मिलती है, जो अष्टाचार्यों की वाणी में संग्रहित है। इनका . एक उद्धरण द्रष्टव्य है