________________ हिन्दी के कृष्ण-भक्त कवि :___ हिन्दी साहित्य में कृष्ण काव्यधारा को प्रवाहित करने का सर्वप्रथम श्रेय मैथिलकोकिल विद्यापति को जाता है परन्तु विद्यापति के कृष्ण-काव्य में जो माधुर्य भाव की रसधारा मिलती है, उस पर गीत-गोविन्दकार जयदेव का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। डॉ० रामकुमार वर्मा के अनुसार कृष्ण-काव्य का सूत्रपात जयदेव से ही मानना चाहिए। लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि जयदेव के कृष्ण-प्रेम संगीत ने हिन्दी कृष्ण काव्यधारा को प्रेरणा प्रदान की और उसी के सुर में सुर मिलाकर मैथिल कोकिल विद्यापति ने अपने गीतों का प्रणयन किया। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में कृष्ण काव्य के प्रथम प्रणेता विद्यापति ही है। (1) विद्यापति : हिन्दी साहित्य में कृष्ण काव्य का श्रीगणेश विद्यापति से ही माना जाना तर्कसंगत प्रतीत होता है। इन्होंने अपनी "पदावली" को सरसता से लिखा, इससे पण्डित-समाज ने इन्हें अभिनव-जयदेव, मैथिल-कोकिल, नवकवि-शेखर आदि उपाधियों से विभूषित किया। हिन्दी जगत में इन्हें असाधारण लोकप्रियता मिली। ___इनका जन्म दरभंगा के विसपी ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता श्री गणपति ठाकुर संस्कृत के विद्वान एवं राजकवि थे। अतः बचपन से ही उन्हें लेखन की परम्परा प्राप्त हुई। इनकी रचनाओं से प्रभावित होकर "तिरेहुते" के राजपरिवार ने इनका खूब सम्मान किया। इनके संस्कृत व अपभ्रंश में लिखे ग्रन्थों के उपरान्त "पदावली" सुविख्यात कृति है। यह मैथिली-हिन्दी की रचना है। भक्तों द्वारा गाये जाने के कारण यह रचना सुविधानुसार परिवर्तित रही है। इन्होंने इसमें राधाकृष्ण के श्रृंगार का वर्णन किया है। बाबू ब्रजनन्दन तथा श्यामसुन्दर इन्हें परम वैष्णव स्वीकार करते हैं जबकि हरप्रसाद शास्त्री, रामचन्द्र शुक्ल जैसे विद्वान इन्हें घोर शृंगारी कवि मानते हैं। ___ नख-शिख-सौन्दर्य, मिलन, आकांक्षा, काम-केलि और पूर्वाधारित प्रेमलीलाओं की वियोग काल में स्मृति आदि इनका मुख्य वर्ण्य विषय रहा है। भाव-वर्णन बड़ा ही मार्मिक, प्रौढ़ व सशक्त बन गया है, जिसमें हृदय की तरलता व गहराई के दर्शन होते हैं। विद्यापति के माधुर्य-भाव का परवर्ती कृष्ण-काल के कवियों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। अष्टछाप कवि या वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख कवि : हिन्दी साहित्य के कृष्ण-काव्य परम्परा में अष्टछाप के कवियों का सर्वाधिक महत्त्व है, जो वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बन्धित था। वल्लभाचार्य के शिष्य गोस्वामी विठ्ठलनाथ ने अपने शिष्य एवं वल्लभाचार्य के शिष्यों में से प्रमुख आठ कृष्ण-भक्तों को समन्वित कर अष्टछाप की रचना की। इन कवियों की भक्ति काव्य रचनाएँ, भगवान् के प्रति तन्मयता आदि प्रसिद्ध रही है। इन कवियों में सूरदास, कुम्भनदास, परमानन्ददास, कृष्णदास, नन्ददास,