________________ उपासना का महत्त्व बढ़ जाने से यह सखी सम्प्रदाय के नाम से जाना गया। इन लोगों ने स्त्री को आत्मसमर्पण का प्रत्यक्ष विग्रह मानकर ही सखी भाव की उपासना को महत्त्व दिया है। इस सम्प्रदाय की मूल भावना इस प्रकार है(१) सततक्रीड़ा-रत युगलमूर्ति का ध्यान (2) सखी भाव से युगलमूर्ति की उपासना इस सम्प्रदाय के अनुयायी दार्शनिक उहापोह में न पड़कर केवल मधुरा-भाव की उपासना में ही आस्था रखते थे। हरिदास के एक शिष्य "भगवत रसिकं" ने कहा है . कि आचारज ललिता सखी, रसिक हमारी छाप। नित्य किशोर उपासना, युगल मन्त्र को जाप॥ ना ही द्वैताद्वैत हरि, ना ही विशिष्टाद्वैत। बन्धे नहीं मतवाद में, ईश्वर इच्छा द्वैत॥ बांस की जाफरी (टटिया या टट्टी) से घिरा होने के कारण इस सम्प्रदाय का नाम टट्टी सम्प्रदाय पड़ गया। इसकी भावी परिणिति भी घोर शृंगारिक भावना के रूप में हुई है। कृष्ण-भक्ति का स्वरूप : ___ कृष्ण-भक्ति-काव्य में भक्ति को स्वतंत्र रस के रूप में अंगीकार किया है। इस काव्य-परम्परा में भक्ति के चार रूप मिलते हैं :-1. सांख्य भक्ति 2. वात्सल्य भक्ति 3. मधुरा भक्ति तथा 4. शान्ता भक्ति। सांख्य भक्ति में श्री कृष्ण की उपासना सखा भाव से की गई है। इसमें गोचारन, माखन चोरी आदि के समय गोपी बालकों के साथ की गई श्री कृष्ण लीलाओं का वर्णन मिलता है। वात्सल्य भक्ति में माता-पिता का स्नेह, दुलार आदि का विशद वर्णन मिलता है। इसमें संयोगावस्था एवं वियोगावस्था; दोनों के मार्मिक चित्र हैं। संयोग में बाल कृष्ण की लीलाओं को देखकर यशोदा असीम आनन्द की अनुभूति अनुभव करती है, परन्तु जब कृष्ण मथुरा चले जाते हैं, उस समय नन्द व यशोदा श्री कृष्ण के विरह में जल बिन मछली की भाँति तड़पते दिखाई देते हैं। अष्टछाप के कवियों ने मुख्य रूप से मधुरा भक्ति को अपनाया है। इसमें वे अपना प्रणय-निवेदन गोपियों के माध्यम से करते दृष्टिगोचर होते हैं। इसमें गोपियाँ तथा कृष्ण के संयोग व वियोग मनोभावों के मनोरम चित्रण हैं। शान्ता भक्ति में मुख्य रूप से शान्त भाव है। सत्संग, उपदेश, भक्ति आदि उद्दीपन विभाव है। भक्त संसार की मोह-माया त्याग कर शान्त-चित्तावस्था में परमानन्द की अनुभूति करे, यही शान्ता भक्ति मानी गई है। कृष्ण भक्ति-काव्य में प्रायः यह रूप कम दिखाया गया है। सूर के विनय के पद इसी भाव से ओतप्रोत हैं। .