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________________ इस प्रकार यह पुराण अपने आप में अनोखा है। इसमें वर्णित कृष्ण अलौकिक भी हैं तो दूसरी तरफ सरस भी। इस पुराण में वर्णित कृष्ण चरित्र का प्रभाव मध्यकालीन हिन्दी कवियों पर सर्वाधिक पड़ा है। इन्होंने श्री कृष्ण के मोहक रूप की व्यंजना के साथ गोपांगनाओं के सम्यक् रूप को अभिव्यक्त कर अपना आश्रय और आलम्बन स्वीकार किया है। विष्णु पुराण में श्री कृष्ण : विष्णु पुराण में भी श्री कृष्ण का मनोरम रूप चित्रित हुआ है। इसमें उनकी रासलीला सम्बन्धी श्लोक हैं। एक स्थान पर श्री कृष्ण की सुन्दरता वर्णन करते हुए कहा गया है कि श्री कृष्ण का कमल सदृश खिला मुख गोपिकाओं के सतृष्ण नेत्रों के आकर्षण का साधन है। उनकी नृत्य की गति और वलय का मधुर रव, दोनों मिलकर गति एवं ध्वनि सौन्दर्य के जनक हो जाते हैं। विष्णु पुराण के चौथे अंश के पन्द्रहवें अध्याय में कृष्ण जन्म तथा पाँचवें में श्री कृष्ण लीला का वर्णन है। इस पुराण में श्री कृष्ण को सृष्टिकर्ता, उसका पालन कर्ता एवं संहारक रूप में स्वीकार किया गया है। इस प्रकार इस पुराण में कृष्ण को पूर्णावतार, परब्रह्म, जगत के कारण तथा परमेश्वर के रूप में निरूपित किया है। ऐसे कृष्णावतार की समानता ब्रह्मपुराण में वर्णित कृष्णावतार ही है। ब्रह्मपुराण में श्री कृष्ण : इस पुराण में श्री कृष्ण की सभी लीलाओं का वर्णन है। डॉ० सोम विष्णुपुराण तथा ब्रह्मपुराण एक ही कवि की कृति मानते हुए लिखते हैं कि-"ब्रह्मपुराण के अध्याय 62 से 103 तक और विष्णु पुराण के पाँचवें अंश के 38 अध्यायों में कृष्ण चरित्र सम्बन्धी श्लोक एक से हैं। कहीं-कहीं एक आध शब्द जैसे—जम्बे के स्थान पर वृत्रे, सुरों के स्थान पर द्विजा और एकाध श्लोक का ही थोड़ा सा अन्तर है। अतः वे किसी एक ही कवि की कृति जान पड़ती हैं।८ पद्मपुराण में श्री कृष्ण :... इस पुराण में श्री कृष्ण-कथा संक्षेप में है। इस पुराण का महत्त्व श्री कृष्ण-लीला के आध्यात्मिक सिद्धान्त पक्ष के दृष्टिकोण से अधिक है। इसमें पाताल खण्ड में श्री कृष्ण की कथा है। उत्तर खंड में श्री कृष्ण का अवतार एवं अन्य चरित्र हैं। इसमें मुख्य रूप से गोप कन्याएँ और देव कन्याएँ गोपियों के रूप में अवतरित हुई दर्शाया गया है। वायुपुराण में श्री कृष्ण : इस पुराण में श्री कृष्ण-कथा विस्तृत नहीं मिलती। इसके अध्याय 96-97 में श्री कृष्ण के वंश का वर्णन है। द्वितीय खण्ड के ३४वें अध्याय में स्यमन्तक
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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