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________________ कहा है कि "मैं सब का उपादान कारण होने से सब की आत्मा हूँ, सब से अनुगत हूँ इसलिए मुझमें कभी भी तुम्हारा वियोग नहीं हो सकता। जगत का परम कारण मैं ही हूँ। मैं ब्रह्मा और महादेव हूँ। मैं सब की आत्मा, ईश्वर और साक्षी हूँ तथा स्वयं-प्रकाश और उपाधि-शून्य हूँ। अपनी त्रिगुणात्मिका माया को स्वीकार करके मैं ही जगत की रचना, पालन और संहार करता रहा हूँ। ऐसा ही भेदरहित मैं परब्रह्म स्वरूप हूँ। इसमें अज्ञानी पुरुष ब्रह्मा, रुद्र तथा अन्य जीवों को विभिन्न रूप में देखता है।"५३ . भागवत पुराण में श्री कृष्ण भक्ति के मूलाधार हैं। इनके चरण-कमल संसार सागर को पार करने के एकमात्र आधार हैं।५४ श्री कृष्ण के दिव्य रूप के जो दर्शन महाभारत में होते हैं, उसका पूर्णरूपेण विकास भागवत में दिखाई देता है। महाभारत तथा भागवत के अनेक आख्यानों के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि महाभारत का नारायणीय धर्म तथा भागवत का भागवत धर्म; दोनों एक ही हैं। गीता का निष्काम कर्म-योग भी भक्ति के अभाव में सफल नहीं हो सकता है। भागवत में इसी भक्ति को विशेष महत्त्व दिया गया है। भागवत में श्री कृष्ण के सभी रूप निरूपित हुए हैं।५५ (1) अद्भुत-कर्मा असुर संहारक श्री कृष्ण (2) बाल कृष्ण (3) गोपीबिहारी कृष्ण (4) राजनीतिवेत्ता कृष्ण (5) योगेश्वर कृष्ण (6) परब्रह्म कृष्ण प्राधान्य रसिकेश्वर कृष्ण। ___ भागवत का दशम स्कन्ध कृष्ण चरित्र के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके पूर्वार्ध में कृष्ण के बाललीला की, असुरों के वध की एवं अनेक अलौकिक घटनाओं का वर्णन है। कंस वध की लीला, बाल लीला एवं किशोर लीलाएँ इसके अन्तर्गत आती हैं। इसके उत्तरार्द्ध में कृष्ण को असुर-संहारक, राजनीतिवेत्ता तथा कूटनीतिज्ञ बताया गया है। जरासंध-वध, द्वारका-निर्माण, राज-पद की प्राप्ति आदि इसके अन्दर समाहित हैं। भागवत में कृष्ण एक ओर मथुरा द्वारिका आदि के महान् योद्धा हैं तो वहीं दूसरी तरफ ब्रजवृन्दावन बिहारीनन्दन गोपालकृष्ण हैं। श्रीमद् भगवद् गीता में ज्ञान, कर्म और उपासना पर बल दिया है परन्तु भागवत तो श्री कृष्ण की भक्ति की महत्ता का सर्वोपरि समर्थक है। इसके अलावा इसमें भी महाभारत की भाँति कृष्ण को पाण्डवों के सलाहकार, अर्जुन के सखा, गीता के उपदेशक एवं धर्म के संस्थापक बताये गये हैं। श्री कृष्ण के योगेश्वर स्वरूप का विकास इसी पुराण में दिखाई देता है। कृष्ण ही पूर्ण ब्रह्म हैं। इसी से इनकी लीलाएँ लौकिक न रहकर योग-लीलाएँ बन गई हैं। गोपियाँ, राधा तथा गोप; ये भी कृष्ण-चरित्र के अभिन्न अंग हैं। गोपियाँ पूर्व जन्म की ऋषि थीं। श्री कृष्ण की लीलाओं में भाग लेने के लिए कृष्ण के साथ उन्होंने भी ब्रज में अवतार लिया था। श्रीमद् भागवत में गोपिकाओं को देवांगनाओं का अवतार बताया गया है।५६
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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