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________________ गोलोक और पाँचवें अध्याय में राधा-मन्दिर के सोलह द्वारों का ऐश्वर्यशाली वर्णन है। छठे में वासुदेव को कश्यप, देवकी को अदिति, नन्द को वसु तथा यशोदा को वसुकामिनी का अंशावतार बताया गया है। इसके सातवें अध्याय में श्री कृष्ण जन्माख्यान, आठवें में जन्माष्टमी व्रत, नौवें में नन्द के पुत्रोत्सव का मनोरम वर्णन मिलता है परन्तु इसमें शृंगारिक वर्णन की अधिकता है। इस पुराण में राधा का विशद वर्णन है जबकि अन्य पुराणों में राधा का इतना वर्णन नहीं है। भागवत में केवल कृष्ण की प्रिय गोपी के रूप में राधा को प्रसिद्धि मिली है। यहाँ राधा कृष्ण की प्राणेश्वरी, उनकी शक्ति तथा उनकी प्रकृति है। कृष्ण कहते हैं कि "राधा! तुम में और मेरे में कोई भेद नहीं है। जैसे दूध में सफेदी, अग्नि में दाहकता और पृथ्वी में गन्ध रहती है, वैसे ही मैं सदा तुझ में रहता हूँ। तुम संसार के आधार हो और मैं कारण रूप हूँ। मैं जब तुम्हारे से अलग रहता हूँ तो लोग मुझे कृष्ण और साथ रहता हूँ तो श्रीकृष्ण कहते हैं। राधा शब्द में प्रयुक्त "र" कार का उच्चारण करोड़ों जन्म से अन्धे, शुभ और अशुभ कर्मफलों को नष्ट करता है। "आकार" गर्भनिवास, मृत्यु और आदि से छुड़ाता है। "धकार" आयु की हानि से बचाता है और आकार भव बन्धन से मुक्त करता है।"५० ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय राधा को सर्वशक्तिमान मान कर उसकी पूजाअर्चना प्रचलित हो गई थी। इसी पुराण में राधा का श्रृंगारी और साहित्यिक वर्णन है। श्री कृष्ण का रूप सौन्दर्यमूलक है। यही सौन्दर्य-चेतना आगे के हिन्दी साहित्य के कृष्णभक्त कवियों में दिखाई देती है। राधा विषयक वर्णनों की मूल उपजीव्य कृति भी यही पुराण रहा है क्योंकि राधा का जन्म, उसका कारण, महत्ता, राधा-माधव की एकरूपता आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन इसी पुराण में निरूपित हुआ है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के साथ श्रीमद् भागवत पुराण भी कृष्ण लीलाओं का स्रोतग्रन्थ माना जाता है। श्रीमद् भागवत पुराण में श्री कृष्ण : . श्री कृष्ण के चरित्र का वर्णन करने वाले पुराणों में भागवत का प्रमुख स्थान है। इसमें वैदिक काल से अब तक वर्णित श्री कृष्ण सम्बन्धी समस्त सामग्री का अनूठा समन्वय दिखाई पड़ता है। इस ग्रन्थ में श्री कृष्ण स्वयं भगवद् रूप हैं एवं अन्य अवतार अंश रूप के ही बोधक माने गये हैं।११ भागवतकार ने श्री कृष्ण को व्यापक रूप में लिया है। वे सोलह कलाओं के पूर्ण पुरुषावतार माने गये हैं। इन्हीं के द्वारा पंच-भूतों की रचना हुई, यह स्वीकारा गया है। एक स्थान पर देवकी कृष्ण की स्तुति करती हुई कह रही है कि :... "हे आद्य ! जिसके अंश का अंश प्रकृति है। जिसके अंश के भाग द्वारा विश्व की सृष्टि, स्थिति और प्रलय करती है। मैं आपकी शरण हूँ।''५२ भगवान् श्री कृष्ण ने स्वयं -15 -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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