________________ (7) नेमिचन्द्रिका :-यह मनरंगलाल की हिन्दी भाषा में रचित काव्य कृति है। इसमें नेमिनाथ के साथ श्री कृष्ण का भी सुन्दर निरूपण हुआ है। कंस-वध, शिशुपाल पर विजय इत्यादि अनेक प्रसंगों का इसमें समायोजन मिलता है। जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण के आधार पर पूतना वध का एक प्रसंग द्रष्टव्य हैहरिवंशपुराण - कुपूतनापूतनभूतमूर्तिः प्रपाययन्ती सविषस्तनौ तम्। स देवताधिष्ठित निष्ठुरास्यो व्यरीरटच्चूचुकचूषणेन॥२४ नेमिचन्द्रिका - रूप कियो इक धाम को विष आंचल दियो जाय। आंचल खैच्यां अतिघणा देवा प्रकार भणि जाय॥२५ इस कृति में निरूपित श्री कृष्ण हरिवंशपुराण की भाँति वीर, पराक्रमी तथा श्रेष्ठ सामर्थ्य नरेश के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। नागदमन का एक अन्य प्रसंग देखियेहरिवंशपुराण - भुजनिहतभुजंगः संसमुच्छित्य पद्मा नुपतटमटतिस्म द्राक् मरुत्वानिवासौ॥२६ नेमिचन्द्रिका - * नागसाधि करके मुरलीधर। सहसपत्र ल्याये इन्दीवर॥२७ समीक्षा : उपर्युक्त विवेचित कृतियों के अलावा भी जैन साहित्य में ऐसी अनेक कृतियाँ उपलब्ध हैं, जिनमें कृष्ण चरित्र का वर्णन हरिवंशपुराण (जिनसेनाचार्य) की भाव भूमि पर हुआ है। इन ग्रन्थों में जैन दिवाकर मुनि चौथमल जी का काव्य ग्रन्थ "नेमिनाथ और पुरुषोत्तम श्री कृष्ण" देवेन्द्रसूरिकृत गजसुकुमाल तथा प्रद्युम्न प्रबन्ध, यशशेखर कृत बलभद्र चौपाई, जयशेखर कृत पाण्डव यशोरसायन इत्यादि महत्त्वपूर्ण हैं। इन कृतियों में जो कृष्ण चरित्र का वर्णन हुआ है, उसमें यत्किंचित् हरिवंशपुराण का प्रभाव अवश्य रहा है। इस प्रकार जैनसाहित्य में उपजीव्य कृति के रूप में हरिवंशपुराण का अत्यधिक महत्त्व रहा है। आधुनिक काल में भी इस ग्रन्थ के वर्ण्य विषय के आधार पर अनेक रचनाओं का निरूपण हुआ है, जिससे यह कालजयी कृति सिद्ध होती है। जैन कृष्ण काव्य-परम्परा में हरिवंशपुराण का स्थान : जैन कृष्ण काव्य-परम्परा की चर्चा पहले की जा चुकी है। उसमें जैनाचार्य जिनसेन के हरिवंशपुराण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साहित्यिक सौन्दर्य, धर्म-प्रचार, दार्शनिक पृष्ठभूमि एवं सांस्कृतिक सौन्दर्य आदि सभी दृष्टियों से इसे महनीय ग्रन्थ माना जा सकता है। यह एक सफल पौराणिक कृति है। ____ हरिवंशपुराण को देखकर इसके रचयिता के अथाह पाण्डित्य, उर्वर मस्तिष्क तथा मार्मिक चिन्तन के प्रति आश्चर्य जान पड़ता है। भाषा पर कवि का अद्भुत अधिकार है। - % 3D