________________ वेगवती धारा की भाँति अजस्र गति से वह पाठकों को अपने साथ बहाये ले चलती है। यह पौराणिक आख्यानों से भरा सागर है। शब्द व अर्थ की इसमें सुन्दर योजना दिखाई देती है। भाषा के साथ इसको गति देने वाले छन्दोविधान भी कम रमणीय नहीं हैं। विविध छन्दों को कवि ने चुना है और सफलतापूर्वक उसका प्रयोग किया है। अलंकारों के प्रयोग में कवि सिद्धहस्त है ही। श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, सन्देह आदि अलंकार इस कृति में अपृथक् रूप से विराजमान हैं। अर्थात् कला-पक्ष के अन्तर्गत आने वाले सभी तत्त्वों का पूर्ण परिपाक इस कृति में दिखाई देता है। ___ हरिवंशपुराण की रस योजना भी बड़ी मार्मिक है। इसमें निरूपित शान्त, शृंगार, वीर, रौद्र आदि रस सहृदय पाठकों को रसमय कर देते हैं। प्रकृति का वर्णन भी बड़ी मनोरमणीयता के साथ इस ग्रन्थ में हुआ है। इतना ही नहीं, कवि की वर्णन शक्ति अद्भुत है। अप्रतिहतगति से उनकी प्रतिभा सभी वर्णनीय विषयों को वास्तविक रूप से प्रकाशित करती चलती जाती है। एक बात को अपने ढंग से कहने का कवि कौशल बड़ा ही प्रभावशाली बन पड़ा है। अनेक वर्णनों में कवि ने इस कृति के सौन्दर्य को भी और बलान्वित किया है। हरिवंशपुराण का जैन धर्म के तत्त्वों के निरूपण एवं जैन धर्म के प्रचार की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। दिगम्बर जैनों का यह धर्म ग्रन्थ है। कवि ने अपने पूर्ववर्ती जैन ग्रन्थों का उपयोग करते हुए जैन सिद्धान्तों का तात्त्विक विश्लेषण विभिन्न प्रसंगों में प्रस्तुत किया है। इसमें जैन धर्म के सभी दार्शनिक पक्ष उजागर हुए हैं। इस ग्रन्थ की दार्शनिक पृष्ठ भूमि पर एक अलग से स्वतंत्र शोध ग्रन्थ अपेक्षित है / इसके दर्शन को समझने के लिए समग्र जैन दर्शन का गहन अध्ययनमनन अपेक्षित हो जाता है। " - हरिवंशपुराण में बौद्धिक-दृष्टिकोण भी हमें सर्वत्र दिखाई देता है। सभी असंभव या अमाननीय घटनाओं की कवि ने बौद्धिक व्याख्या प्रस्तुत की है। कृष्ण का सृष्टि का नियन्ता ब्रह्म न होकर महापुरुष होना, द्रौपदी के पाँच पति न होना आदि कवि के तर्क संगत व्याख्यात्मक दृष्टिकोण का परिचय देते हैं। हरिवंशपुराण का तुलनात्मक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्त्व है। जैन एवं जैनेतर ग्रन्थों के सिद्धान्तों के प्रतिपादन में कवि का सुन्दर समन्वय बड़ा ही रोचक एवं महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है। सुभाषितों तथा सूक्तियों का तो यह ग्रन्थ, मानो भण्डार है। कवि के विशाल ज्ञान तथा विशाल अनुभव की अभिव्यक्ति इसमें हुई है। कलापक्ष के विश्लेषण में इनकी कतिपय सूक्तियों की हमने सूची दी है। - हरिवंशपुराण का सर्वाधिक महत्त्व उसके सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में सन्निहित है। तत्कालीन समाज, राजनीति, आचार-विचार, परम्परा तथा दृष्टिकोण को समझने के