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________________ (5) हरिवंशपुराण :___यह श्री "खुशालचन्द काला" की हिन्दी भाषा में रचित अप्रकाशित रचना है। इसका रचनाकालं कवि ने स्वयं संवत् 1799 (सन् 1742) माना है। इस ग्रन्थ में निरूपित कृष्ण चरित्र स्पष्टतः जिनसेनाचार्यकृत हरिवंशपुराण पर आधारित है। यह बोलचाल की सरल हिन्दी भाषा में रचित काव्य ग्रन्थ है। गोवर्धन-धारण प्रसंग में दोनों कृतियों की समानता देखियेहरिवंशपुराण - कुदेवपाषाणमयातिवर्षैरनाकुलो व्याकुलगोकुलाय। (जिनसेन) दधार गोवर्धनमूर्ध्वमुच्चैः स भूधरं भूधरणोरुदोर्ध्याम्॥२० हरिवंशपुराण - देवा वन में जाय मेघ तणी वरषा करी। . (खुशालचन्द) गोवरधन गिरिराय कृष्ण उठायो चाव सो॥२१ (6) उत्तरपुराण :-इस कृति के रचयिता भी खुशालचन्द काला हैं। यह भी हिन्दी भाषा में रचित अप्रकाशित ग्रन्थ है। इसका रचनाकाल कवि के अनुसार संवत् 1797 (सन् 1742) है। इस ग्रन्थ में निरूपित कृष्ण-चरित्र में हरिवंशपुराण की छाया दिखाई देती है। कंस की रंगशाला में श्री कृष्ण की वीरता का यह प्रसंग देखिए, जो दोनों कृतियों में एक रूप सा चित्रित हुआ हैहरिवंशपुराण - अदयमथसंमूलोन्मूलितोल्लासिताभस्वरदनपरिघातै|रनिर्घातघोषैः। विरसविरटिते भौ तौ निहत्य प्रविष्टौ, पुरमुरुरववेलाक्ष्वेडितास्फोटगोपैः॥ अभिपतदरिहस्तात्खड्गमाक्षिप्यकेशेष्वतिदृढ़मति गृह्याहत्य भूमौ सरोषम्। विहितपरुषपादाकर्षणस्तं शिलायां तदुचितमिति मत्वास्फाल्य हत्वा जहास // 2 उत्तरपुराण - ... जाके सम्मुख दौड़यो जाय। दंत उपारि लयो उमगाय।। ताही दंत थकी गज मारि। हस्ति भागि चली पुर मझारि। ताही जीति शोभित हरी भए। कंस आप मल्ल मृति लखि लए। रुधिर पवाह थकी विपरीत। देख क्रोध धरि करि तणि नीति॥ आप मल्ल के आये सोय। तब हरि बेग अरि निज जोय। चरन पकरि जब लये उठाय। पंखि सनउन ताहि फिराय॥२३
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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