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________________ (3) त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र :-यह संस्कृत एवं अपभ्रंश भाषा के उद्भट अध्येता हेमचन्द्राचार्य का संस्कृत भाषा में रचित पौराणिक चरित महाकाव्य है। इस ग्रन्थ के आठवें पर्व में कवि ने कृष्ण चरित्र का वर्णन किया है। हेमचन्द्राचार्य का यह वर्णन भी हरिवंशपुराण के वर्णन से साम्य रखता है। कवि ने हरिवंशपुराण में विवेचित कृष्ण कथा को सूत्र रूप में ग्रहण कर अपनी मौलिकता के आधार पर उसे मार्मिकता के साथ निरूपित किया है। यह रचना विक्रम संवत 1216 की मानी जाती है। अपभ्रंश-कृतियाँ :(1) त्रिषष्टि महापुरुष गुणालंकार :-यह महाकवि "पुष्पदन्त" की अपभ्रंश भाषा में रचित विशालकाय काव्य-कृति है। इसमें कवि ने जैन-जगत के त्रिषष्टि शलाकापुरुषों का चरित्र वर्णन किया है। इसके उत्तर भाग के 81 से 92 तक सर्गों में कृष्ण-कथा का वर्णन हुआ है। यह वर्णन भी संक्षेप में ही है परन्तु मार्मिक प्रसंगों के निरूपण में आगम साहित्य तथा हरिवंशपुराण का आधार ग्रहण किया गया है। (2) णेमिणाह-चरित्र (हरिवंशपुराण):-यह महाकवि "रइधू" का ग्रन्थ है जिसे कवि ने अपभ्रंश भाषा में निबद्ध किया है। यह ग्रन्थ प्रकाशित नहीं है। परन्तु "राजाराम जैन" ने इस कृति पर शोध कार्य किया है। उनके अनुसार यह ग्रन्थ परम्परागत शैली से लिखा जैन-काव्य है। इस ग्रन्थ का मूलाधार जिनसेनाचार्य कृत हरिवंशपुराण रहा है। हरिवंशपुराण की कथावस्तु,को ही कवि ने 14 सन्धियों तथा 302 कड़वकों में वर्णित किया है। हरिवंश का प्रारम्भ यादवों की उत्पत्ति, वसुदेव चरित्र, कृष्ण-चरित्र, नेमिनाथ चरित्र तथा प्रद्युम्न चरित्र आदि का वर्णन आलोच्यकृति हरिवंशपुराण के अनुसार ही हुआ है। इस कृति की रचना विक्रम की 15-16 वीं शताब्दी मानी जाती है। हिन्दी कृतियाँ :-संस्कृत एवं अपभ्रंश भाषाओं में हरिवंशपुराण से प्रभावित रचनाओं के बाद हम यहाँ हिन्दी भाषा में प्रभावित रचनाओं का उल्लेख करेंगे। (1) प्रद्युम्न चरित्र :-यह विक्रम संवत् 1411 में रचित कवि "सधारू" की रचना है। इसमें मुख्यतः श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का चरित्र वर्णन है। परन्तु कवि ने श्री कृष्ण की वीरता एवं उनके वैभव का भी सुन्दर चित्रण किया है। यह ब्रजभाषा की कृति है लेकिन इसके कथानक का मुख्याधार हरिवंशपुराण रहा है। कृष्ण का विवाह, प्रद्युम्न का जन्म, अपहरण, उसका राज्याभिषेक, विरक्ति एवं वैराग्य इत्यादि सभी प्रसंगों के वर्णन में हरिवंशपुराण की छाया प्रतिबिम्बित प्रतीत होती है। "हरिवंश" की भाव भूमि पर रुक्मिणीहरण प्रसंग में श्री कृष्ण द्वारा ताल वृक्षों को गिराने का एक पद उदाहरणार्थ द्रष्टव्य हैहरिवंशपुराण : अंगुलीयकनद्धं च वज्रं संचूर्ण्य पाणिना। तस्या संदेहमामूलं चिच्छेद यदुनन्दनः॥ % D
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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